Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१६०
भाताधर्मकथा कल्पिविहारेण देशमध्ये विहार गर्नु श्रेय इत्यर्थ । एवम् उक्तप्रकारेण, 'संप्रेक्षते स्व मनसि विचारयतिस्मेत्यर्थः । ' सपेहिता 'संप्रेक्ष्य चिनार्य, कल्ये यावद्विारति । अत्र यावच्छन्देन-जन्तेमहय राय आपुच्छित्ता, पाहिहारिय, पीड़फलग सेज्जासथारय पच्चप्पिणइ, पञ्चप्पिणित्ता पथएण अनगारेण सदि बहिया अभुज्जएण जाव जणवयविहारेणं' इतिपाठस्य सग्रहः ॥ ३२ ॥ फलग सेज्जा संधारय पच्चपिणित्ता पंधण्ण अणगारेणं सद्धि पहिया अन्भुजएण जाव जणग्यविरारेण विररित्तए एव संपेहेर, संपेहित्ता कल्ल याव विहरह) मेरा रिततो अय इसी में हैं कि प्रात काल मडक राजा से पूछकर प्रतिरारिका-जो ये पीठ फलग शय्या सस्तारक है उन्हे पीछे देकर पायक अनगार के साथ उत्तम योगरूप उद्यम से युक्त-अप्रमत्तदशा विशिष्ट-तीर्थ करादि द्वारा आचरित और गुरू जन द्वारा उपदिष्ट-ऐमाविरार यहा से कर । अर्थात् नव कल्पित विहार से अन्य देशों में विहार करना ही मुझे अय हितकारक है । इस प्रकार का विचार शैलक अनगार ने किया। याद में वे इसी विचार के अनुसार वहां से विहार कर गये। यहा यावत् शब्द से "जलते-मडय राय आपुच्उित्ता पाडिहारिय पीठफलग सेजासधारय पच्चप्पिणड, पच्चेपिणित्ता पथएण अणगारेण सद्धि यरिया अम्भुनण्ण जाव जणक्य विहारेण" इस पाठ का सग्रह हुआ है । इसका अर्थ ऊपर लिखा जा चुका है । सूत्र ॥ ३० ॥ अणगारेण सद्धि बहिया अभुजए ण जाव जणवय विहारेण विहरित्तए एव सपेहेह संपेहिता कल्ल याव विहरइ) ड भारा पाताने भाटे तो मेरा श्रेयर ગણાય કે સવારે મહૂકરાજાને જણાવી પીઠ ફલક શય્યા સખ્તારક સેપીને પાથક અનગારની સાથે cત્તમ યોગરૂપ ઉદ્યમથી યુક્ત-અપ્રમત્તદશાવિશિષ્ટ -અને તીથકર વગેરે દ્વારા આચરિત અને ગુરુ જન દ્વારા ઉપદિષ્ટ વિહાર કરૂ એટલે કે નવ કલ્પિત વિહારથી બીજા દેશોમાં વિહાર કરે જ હવે અત્યારના સજોગોમાં મારે માટે હિતાવહ છે આરીતે રોલક અનગારે વિચાર કર્યો ત્યાર પછી એ વિચાર પ્રમાણે જ ત્યાંથી તેઓએ બીજે વિહાર કર્યો मडी यात्' श७४थी "जलते मडुय राय आपुन्छिता पाडिहारिय पीठफळगसेज्जा संथारय पञ्चप्पिणइ, पच्चप्पिणिता पथएण अणगारेण सदि बहिया अध्भुज्जएण जाव जणययविहारेण) मा पाइने स थ छे माना पर्थ पहला સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે. સૂત્ર “૩૨ ” છે