Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa Author(s): Rajiv Dikshit Publisher: Swadeshi Prakashan View full book textPage 6
________________ - पंचगव्य अमृतम् । भारत में देशी गाय की जितनी नस्लें हैं इनके इतिहास में झाकें तो स्पष्ट होता है कि उनका आकार, दूध देने की क्षमता, बैलों द्वारा भार खींचने की क्षमता यह सब वहाँ की भौगोलिकता के अनुसार है। अत: यह कह पाना मुश्किल है कि कौन सी नस्ल की गाय श्रेष्ठ है। भारत में सभी प्रजातियों की गाय अपनी-अपनी भौगोलिकता में अपने-अपने स्थान पर श्रेष्ठ हैं। उत्तर पश्चिम भारत की गायें दूध अधिक देती हैं तो इसका भी कारण वहाँ की भौगोलिकता है। दक्षिण भारत एवं पहाड़ी की गाय दूध सबसे कम देती हैं। तो यह भी स्थानीय भौगोलिकता के कारण ही है। लेकिन गायों द्वारा दिए गए तीनों गव्यों (दूध, गोबर व गौमूत्र) को सम्मलित कर अध्ययन करें तो पता चलता है कि भारत की सभी नस्लें समान मात्रा में अमृत तुल्य गव्य प्रदान करती हैं। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि जो गाय दूध अधिक देती है। उनका गौमूत्र तुलनात्मक रुप से उतना श्रेष्ठ नहीं होता जितना कम दूध करने वाली गाय का होता है। इसी प्रकार गोबर का भी गुणधर्म है। तीनों गव्यों को मिलाकर देखें तो सभी प्रकार की गाएं समान ईकाई में गव्य प्रदान करती हैं। गाय जीव के बारे में वेदों में कहा गया है कि तिलम् न धान्यम्, पशुओं न गाव : । जिस प्रकार से तिल धान्य होते हुए भी सभी धान्य में इतना श्रेष्ठ है कि इसे केवल धान्य नहीं कहा जा सकता इसी प्रकार जीवों में गाय इतनी श्रेष्ठ है कि इन्हें पशु नहीं कहा जा सकता। ऋग्वेद की बात मानें तो गायों का वर्णन उषा की और सूर्य की गायों के रुप में है। इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि गायें सूर्य की सीधी प्रतिनिधि हैं। अत: जो कुछ भी हमें सूर्य और उससे प्राप्त उषा से मिलता है। वह सब कुछ गाय दे सकती है। वेदों ने यह भी कहा कि - गाय प्रकाश की प्रदीप किरणें हैं। अथर्व वेद ने तो स्पष्ट कहा है कि - माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदित्यानाम मृतस्य नामिः। . अर्थात गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और अमृत की नाभी है। आगे यह भी जोड़ा है कि गौ ही जगत के समस्त पदार्थों की जननी है। गाय स्वयं कहती है - ना केवला पयसां प्रसूति मवेहि, मां कामदुधां प्रसन्नाम्। . . अर्थात् - प्रसन्न होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली मुझको केवल दूध देने वाली न समझे रहना। पुराणों में गाय के संबंध में - . गो सर्व देवमयी, गो सर्व तीर्थमयी। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा । THREEPage Navigation
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