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गणितानुयोग : प्रस्तावना
३२०२२८
३२२३०३१
१५३१६३१११
चन्द्रमास
५३४३१५७८
सिर्फ यही कहा जा सकेगा कि यज्ञ-यागादि के समयज्ञान के लिए
१३७०८ नक्षत्र, पर्व, अयन आदि का विधान बताया गया है।"
चन्द्रोच्चभगण ४८८२२८५७५८९ इसी प्रकार यजुर्वेदज्योतिष प्रायः ऋक् ज्योतिष से मिलता जुलता है। विषय के प्रतिपादन में कोई विशेष भेद नहीं है।
१०६०८५
२६८८६
चंद्रपातभगण २३२१६५. अथर्वज्योतिष को ज्योतिष का स्वतन्त्र ग्रन्थ कहा जा सकता है
१६३१११ जिसमें फलित ज्योतिष प्रधान है।
सौर मास ५१८४००००
३४२०० कल्प, सूत्र, निरक्त और प्याकरण में ज्योतिष चर्चा मिलती है। बौद्धायन सूत्र में “मीनमेषयोर्मेषवृषभयोर्वसन्तः” अधिमास १५६१५७८..
१०५० लिखा है जिससे ज्ञात होता है इन सूत्र ग्रन्थों के समय में राशियों का प्रचार भारत में था। निरुक्त में दिनरात्रि, पक्ष, अयन का वर्णन है तथा युग पद्धति की मीमांसा मिलती है। याज्ञवल्क्य
३५२५० स्मृति में क्रान्तिवृत्त के १२ भागों के कथन से मेषादि १२ राशियों का प्रमाण सिद्ध होता है। इसी प्रकार महाभारत में ज्योतिष तिथि
१०५७५०० शास्त्र की अनेक चर्चाएँ मिलती हैं।
ई० १०० के लगभग जो स्वतन्त्र ज्योतिष ग्रन्थ लिखे गये 'उनकी चर्चा वराहमिहिर ने पंच सिद्धान्तिका में की है। ये ५
तिथिक्षय २५
१६५४७७ सिद्धान्त क्रमशः पितामह, वसिष्ठ, रोमक, पोलिश और सूर्य है। थीबो की पंच सिद्धान्तिका भूमिका के अनुसार पितामह सिद्धान्त
थीबों के अनुसार उपरोक्त ई० ४०० के लगभग रचित हुए। सूर्य प्रज्ञप्ति के समान प्राचीन है। इसे ब्रह्मगुप्त और भास्कर ने पोलिश सिद्धान्त का ग्रह गणित भी अंकों द्वारा स्थूला रीति से आधार माना है । इससे वसिष्ठ सिद्धान्त संशोधित एवं परिवर्धित निकाल गया है। अलबरूनी के अनुसार यूनानी सिद्धान्तों के रूप में है जिसमें केवल १२ श्लोक हैं। वर्तमान लघु वसिष्ठ अनुसार इसकी रचना हुई। किन्तु कर्ब ने इसका खंडन किया सिद्धान्त ६४ श्लोक वाला है। इसका गणित परिमार्जित और है। सूर्य सिद्धान्त में युगादि से अहण लाकर मध्यम ग्रह सिद्ध विकसित है।
किये गये हैं। आमे संस्कार देकर स्पष्टग्रह विधि प्रतिपादित की लाटदेव का रोमक सिद्धान्त ग्रीक-सिद्धान्तों के आधार पर है। ग्रहगमन परिधि के अनुसार सिद्ध किये गये हैं जिससे ग्रहों बनाया गया बतलाते हैं जिसमें यवनपुर के मध्याह्नकालीन सिद्ध की योजनात्मक और कलात्मक गतियाँ प्रमाणित हो जाती हैं। किये गये अहर्गण है। थीबो नहीं मानते कि मुलतः इसे धीषेण इस गन्थ में मध्यम, स्पष्ट, त्रिप्रश्न, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, परलेख, ने रचा। इसका गणित स्थूल है और वह सम्भवतः ई० १००- ग्रहयुति, नक्षत्रग्रहयुति, उदयअस्त, अंगोन्नति, पात. अधिकार तथा २०० का हो सकता है। फिर भी इससे युग पद्धति के निर्माण भूगोल अध्याय दिये गये हैं। की शुरुआत कही जा सकती है। सैद्धान्तिक विवरण इसमें पंच सिद्धान्तों के सिवाय नारद संहिता, गर्ग संहिता आदि निम्नलिखित रूप में है 1 आर्या में चन्द्र साधन विधि और ग्रन्थ भी हैं। पाराशर द्वारा भी फलित ज्योतिष का अशुद्ध है।
वृहत्पाराशर होराशास्त्र प्रसिद्ध है। महा युगान्त ४३२०००० वर्षों का; युगान्त (२८५० वर्षों का)
६. बौद्ध संस्कृति में भूगोल, ज्योतिष एवं नक्षत्र भ्रम १५८२१८५६०० १०४३८०३ रविभ्रम ४३२०००० २८५०
खगोलादि सम्बन्धी गणित सावन दिवस १५७७८६५६४० १०४०९५३
ज्ञात हुआ है कि वेदांग ज्योतिष के स्तर पर गणित-ज्योतिष चन्द्रभगण ५७७५१५७८
३८१०० सम्बन्धी बौद्ध ग्रन्थ शार्दू रकरण-अवदान है। गणित-ज्योतिष का
ऐसा विवरण चीनी बौद्ध ग्रन्थों में है जिनमें इस ग्रन्थ के दो
१ देखिए-वही, पृ० १०० । २ विशेष विवरण हेतु देखिए, शंकर बालकृष्ण दीक्षित, भारतीय ज्योतिष (अनु० शि० झारखण्डी) लखनऊ, १९७५ ।