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७ प्रकाशकीय - निवेदन है पूर्वमुनिपतिविरचित 'धर्मोपदेशश्लोकाः' इस नाम से समलंकृत यह लघु ग्रन्थ संस्कृत और हिन्दी भाषा युक्त प्रकाशित करते हुए हमें अति हर्ष-आनन्द हो रहा है।
___ यह ग्रन्थ प्राचीन है और संस्कृत भाषा में १२६ श्लोकों की रचना विविध महापुरुषों के नाम निर्देशपूर्वक सुन्दर की गई है।
__इस ग्रन्थ के १२६ श्लोकों पर शास्त्रविशारद-साहित्यरत्न-कविभूषण परमपूज्य आचार्य गुरुदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज साहब ने अपने संयमजीवन की पूर्व अवस्था में पंन्यास पदवी प्राप्त करने के पश्चाद् पंन्यास पदवी में रहकर ही अपने अन्तेवासि (शिष्य) पूज्य मुनिराजश्री विबुध विजय जी म. की प्रार्थना-प्रेरणा से इस ग्रन्थ के प्रत्येक श्लोक का पदच्छेद, अन्वय, शब्दार्थ, श्लोकार्थ एवं संस्कृतानुवाद वि. सं. २०१७ की साल में गुजरात-अहमदाबाद-मांडवी की पोल के जैनउपाश्रय में