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अमितगतिविरचिता
'चिकित्सामष्टधा वैद्या विदन्तो ऽप्यभवन् क्षमाः। तापस्य साधने नास्य दुर्जनस्येव सज्जनाः॥५४ तं वर्धमानमालोक्य दाहं देहे महीपतेः। मन्त्रिणा घोषणाकारि मथुरायामशेषतः ॥५५ दाहं नाशयते राज्ञो यः कश्चन शरीरतः। ग्रामाणां दीयते तस्य शतमेकं सगौरवम् ॥५६ कण्ठाभरणमुत्कृष्टं मेखला खलु दुर्लभा। दीयते वस्त्रयुग्मं च राज्ञा परिहितं निजम् ॥५७ दार्वथ'चन्दनस्यैको वाणिजो निर्गतो बहिः। ददर्श दैवयोगेन रजकस्य करस्थितम् ॥५८ गोशीर्षचन्दनस्येदं तेन ज्ञात्वालिसंगतम् । भणितो ऽसौ त्वया भद्र क्व लब्धं निम्बकाष्टकम् ॥५९ तेनावादि मया प्राप्तं वहमानं नदीजले। वणिजोक्तमिदं देहि गृहीत्वा काष्ठसंचयम् ॥६०
५४) १. रोगिस्वरूपं विदन्तः। ५५) १. समन्ततः सर्वतः । ५८) १. क काष्ठार्थम् ।
आठ प्रकारकी चिकित्साके जाननेवाले वैद्य भी उसके उस ज्वरके सिद्ध करनेमेंउसके दूर करने में इस प्रकार समर्थ नहीं हुए जिस प्रकार कि सज्जन मनुष्य दुर्जनके सिद्ध करनेमें-उसे वश करने में समर्थ नहीं होते हैं ॥५४॥ ।
__ राजाके शरीरमें बढ़ते हुए उस दाहको देखकर मन्त्रीने मधुरा (मथुरा) में सब ओर यह घोषणा करा दी कि जो कोई राजाके शरीरसे उस दाहको नष्ट कर देगा उसे धन्यवादपूर्वक सौ ग्राम दिये जायेंगे। इसके साथ ही उसे उत्तम हार, दुर्लभ कटिसूत्र और राजाके द्वारा पहने हुए दो वस्त्र भी दिये जायेंगे ॥५५-५७॥
तब एक वैश्य चन्दनकी लकड़ी लेनेके लिए नगरके बाहर गया। भाग्यवश उसे एक चन्दनकी लकड़ी वहाँ धोबीके हाथमें दिखाई दी ।।५८।। ____ उसने भौंरोंसे व्याप्त उस लकड़ीको गोशीर्ष चन्दनकी जानकर धोबीसे पूछा कि हे भद्र ! तूने यह नीमकी लकड़ी कहाँसे प्राप्त की है ।।५९॥ . इसके उत्तरमें धोबीने कहा कि यह मुझे नदीके जलमें बहती हुई प्राप्त हुई है। इसपर वैश्यने कहा कि तू इसके बदले में दूसरी लकड़ियोंके समूहको लेकर उसे मुझे दे दे ॥६०॥
५४) ब विदन्तो नाभवन् । ५५) इ तापं देहे। ५७) ब मेखलाः खलदुर्लभाः । ५८) इस्यैको वणिजो। ५९) अ°लिगं ततः, ब क ड संगतः । ६०) ड वाणिजोक्त ।