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अमितगतिविरचिता
वामनः पामनो' मूको रोमशः कर्कशः शठः । दुभंगो दुर्जनः कुष्टी जायते रात्रिभुक्तितः ॥७ कोविदः कोमलालापो नीरोगः सज्जनः शमी । त्यागी भोगी यशोभागी सागरान्तमहीपतिः ॥८ आदेयः सुभगो वाग्मी मन्मथोपमविग्रहः । निशाभुक्तिपरित्यागी मर्त्यो भवति पूजितः ॥९ [ युग्मम् ] यामिनीभुक्तितो दुःखं सर्वत्र लभते यतः । दिवाभोजनतः सौख्यं दिनभुक्तिस्ततो हिता ॥ १० यो भुङ्क्ते दिवसस्यान्ते विवज्यं घटिकाद्वयम् । तं वदन्ति महाभागमनस्तमितभोजनम् ॥११ भुङ्क्ते नालीद्वयं हित्वा यो दिनाद्यन्तभागयोः । उपवासद्वयं तस्य मासेनैकेन जायते ॥१२ पञ्चम्यामुपवासं यः शुक्लायां कुरुते सुधीः । नरामरश्रियं भुक्त्वा यात्यसौ पदमव्ययम् ॥१३
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७) १. कण्डूयमान । ९) १. प्रीतिकरः ।
१०) १. समीचीना ।
सर्प, बौना (कदमें छोटा), खुजली रोगवाला, गूँगा, अधिक रोमोंवाला, कठोर, मूर्ख, भाग्यहीन (घृणास्पद), दुष्ट और कोढ़से संयुक्त होता है ॥६-७||
इसके विपरीत उस रात्रिभोजनका परित्याग कर देनेवाला मनुष्य विद्वान्, कोमल भाषण करनेवाला, रोगसे रहित, सज्जन, शान्त, दानी, भोगोंसे संयुक्त, यशस्वी, समुद्रपर्यन्त समस्त पृथिवीका स्वामी, उपादेय ( प्रशंसनीय ), सुन्दर, सुयोग्य वक्ता और कामदेव समान रमणीय शरीरवाला होता हुआ पूजाका पात्र होता है ॥८-९ ॥
चूँकि प्राणी रात्रिभोजनसे सर्वत्र दुखको और दिनमें भोजन करनेसे सर्वत्र सुखको प्राप्त होता है, इसीलिए दिनमें भोजन करना हितकर है ॥१०॥
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में दो घटिकाओंको छोड़कर —सूर्यके अस्त होनेसे दो घटिका ( ४८ मिनट) पूर्व ही - भोजन कर लेता है उस अतिशय पुण्यशाली पुरुषको अनस्तमितभोजी कहा जाता है ||११||
जो व्यक्ति दिनके प्रारम्भमें और अन्तमें दो नालियों ( ७७ लव ) को छोड़कर शेष दिनमें भोजन करता है उसके इस प्रकारसे एक मासमें दो उपवास हो जाते हैं ||१२||
जो बुद्धिमान् शुक्ल पंचमी के दिन उपवासको करता है वह मनुष्यों व देवोंकी लक्ष्मीको भोगकर शाश्वतिक ( अविनश्वर ) पदको - मोक्षको -प्र - प्राप्त होता है ॥ १३ ॥ ८) ब ंरान्तर्महीपतिः । १०) अ सुखं for यतः । ११) अ विपर्य for विवर्ण्यं ।