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धर्मपरीक्षा-१०
१६९ द्विजा जजल्पुरत्रं नो तवास्ति दूषणं स्फुटम् । बिडालदोषवारणं कुरुष्व सो ऽगदोत्ततः ॥९१ कैरोम्यहं द्विजाः परं भवद्भिरीश्वरैः समम् । बिभेति जल्पतो मनः पुरस्य नायकैर्मम ॥९२ यदि भवति' मनुष्यः कूपमण्डूकतुल्यः कृतकबधिरकल्पः क्लिष्टभृत्योपमानः । अवितर्थमपि तत्त्वं जल्पतो मे महिष्ठा भवति मनसि शङ्का भीतिमारोपयन्ती ॥९३ श्रुतं न सत्यं प्रतिपद्यते' यो ब्रूते लघीयो ऽपि निजं गरीयः । अनीक्षमाणो परवस्तुमानं तं कूपमण्डूकसमं वदन्ति ॥९४ विशुद्धपक्षी जलधेरुपेतो' कदाचनापृच्छयते बर्दुरेण । कियानसौ भद्र स सागरस्ते जगाद हंसो नितरां गरिष्ठः॥९५ प्रसार्य बाहू पुनरेवमूचे भद्राम्बुराशिः किमियानसौ स्यात् ।
अवाचि हंसेन तरां' महिष्ठः स प्राह कूपादपि कि मदीयात् ॥९६ ९१) १. बिडाले। ९२) १. वारणम् । २. पण। ९३) १. तहि । २. सत्यम् । ३. भो गरिष्ठा द्विजाः; क हे विप्राः । ९४) १. न मन्यते । २. पुरुषम् । ९५) १. आगतः । २. कस्मादागतः, सागरात् इति कथिते । ३. राजहंसः । ४. तव । ९६) १. क अतिशयेन । २. गुरुतरः; क गरिष्ठः।।
इस प्रकार मनोवेगके कहनेपर ब्राह्मण बोले कि इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है, यह स्पष्ट है । तुम बिलावके इस दोषका निवारण करो। यह सुनकर मनोवेग बोला कि ठीक है, मैं उसके इस दोषका निवारण करता हूँ, परन्तु हे विप्रो! इस नगरके नेतास्वरूप आप-जैसे महापुरुषोंके साथ सम्भाषण करते हुए मेरा मन भयभीत होता है ॥९१-९२॥
___ यदि मनुष्य कूपमण्डूकके सदृश, कृत्रिम बधिर (बहिरा ) के समान अथवा क्लिष्ट सेवकके समान हो तो हे महापुरुषो ! यथार्थ भी वस्तुस्वरूप को कहते हुए मेरे मनमें भयको उत्पन्न करनेवाली शंका उदित होती है ।।९३॥ जो मनुष्य सुने हुए वृत्तको सत्य नहीं मानता है, अपनी अतिशय छोटी वस्तुको भी जो अत्यधिक बड़ी बतलाता है, तथा जो दूसरेके वस्तुप्रमाणको नहीं देखता है-उसपर विश्वास नहीं करता है; वह मनुष्य कूपमण्डूकके समान कहा जाता है ।।१४।।
उदाहरणस्वरूप एक विशुद्ध पक्षी-राजहंस-किसी समय समुद्रके पास गया। उससे मेंढकने पूछा कि भो भद्र! वह तुम्हारा समुद्र कितना बड़ा है । इसपर हंसने कहा कि वह तो अतिशय विशाल है ॥९५॥
____ यह सुनकर मेंढक अपने दोनों हाथोंको फैलाकर बोला कि हे भद्र ! क्या वह समुद्र इतना बड़ा है। इसपर हंसने कहा कि वह तो इससे बहुत बड़ा है। यह सुनकर मेंढक पुनः बोला कि क्या वह मेरे इस कुएँ से भी बड़ा है ॥२६॥ ९१) क सो ऽवदत्ततः । ९२) ब पुरश्च; अ नायकैः समम् । ९३) अ ब क इ बधिरतुल्यः । ९४) ब तत्कूप ।
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