Book Title: Dharm Pariksha
Author(s): Amitgati Acharya, 
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh

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Page 352
________________ धर्मपरीक्षा - १९ मत्स्येशाकुनिके व्याघ्रपार्पाद्धकैठकादितः । ददानः संततं दुःखं पापीयांस्तस्करो मतः ॥५४ इहे दुःखं नृपादिभ्यः सर्वस्वहरणादिकम् । वित्तापहारिणः पुष्पं नारकीयं पुनः फलम् ॥५५ पन्थानः श्वभ्रकूपस्य परिघाः स्वर्गसद्मनः । परदाराः सदा त्याज्याः स्वदारव्रतरक्षिणा ॥५६ द्रष्टव्याः सकला रामा मातृस्वसृ सुतासमाः । स्वर्गापवर्गसौख्यानि लब्धकामेन धीमता ॥५७ दुःखदा विपुलस्नेहा निर्मलामलकारिणी । तृष्णाकरी रसाधारा सजाउया तापधनी ॥५८ ददाना निजसर्वस्वं सर्व द्रव्यापहारिणी । परस्त्री दूरतस्त्याज्या विरुद्धाचारवर्तिनी ॥५९ ५४) १. धोवर । २. कोटपाल । ३. खाटका । ४. एतच्चकारात् तस्करोऽधिकपापी । ५५) १. लोके । ५६) १. अगंलाः । ५७) १. भगिनी । २. लब्धुम् इच्छुकेन । ३२१ मछली, पक्षिघातक, व्याघ्र, शिकारी और ठग इत्यादि ये सब प्राणिघातक होने से यद्यपि पापी माने जाते हैं; परन्तु इन सबकी अपेक्षा भी चोर अधिक पापी माना गया है । कारण कि वह धनका अपहारक होनेसे प्राणीके लिए निरन्तर ही दुखप्रद होता है ||५४|| जो मनुष्य दूसरेके धनका अपहरण किया करता है उसे इस लोक में तो राजा आदिके द्वारा सर्व सम्पत्ति अपहरणादिजनित दुखको सहना पड़ता है तथा परलोक में नरकों के दुखको भोगना पड़ता है ॥५५॥ जिस सत्पुरुषोंने स्वदारसन्तोष — ब्रह्मचर्याणुव्रत –— को स्वीकार कर लिया है उसे उक्त व्रतका संरक्षण करनेके लिए निरन्तर परस्त्रियोंका परित्याग करना चाहिए। कारण यह कि नरकरूप कुएँ में पटकनेवाली वे परस्त्रियाँ स्वगँरूप भवनके बेंडा (अर्गला ) के समान हैं - प्राणीको स्वर्ग से वंचित कर वे उसे नरकको ले जानेवाली हैं || ५६॥ जो विवेकी भव्य जीव स्वर्ग और मोक्षके सुखोंको प्राप्त करना चाहता है उसे समस्त स्त्रियोंको माता, बहन और पुत्रीके समान देखना चाहिए ॥ ५७ ॥ ॥ परस्त्री अतिशय स्नेह करके भी प्राणी के लिए दुखप्रद है, निर्मल - सुन्दर शरीरको धारण करनेवाली - होकर भी मलको - पापको - उत्पन्न करनेवाली है, रस-आनन्द अथवा श्रृंगारादिरस (विरोध पक्ष में - जल ) - की आधार होकर भी तृष्णाको - अतिशय भोगाकांक्षाको ( विरोध पक्ष में - प्यासको ) - बढ़ानेवाली है, अज्ञानतासे ( विरोध पक्ष मेंशीतलता से परिपूर्ण होकर भी सन्तापको (विरोध पक्ष में- उष्णताको ) - बढ़ानेवाली है, तथा अपना सब कुछ देकरके भी सब द्रव्योंका - वीर्य आदिका ( विरोध पक्ष में- धनका) अपहरण ५४) क मात्स्य ं । ५५) इ पुंस: for पुष्पम् । ५६) व इ. परिखाः । ५९) अ ब ' चारवर्धिनी । ४१

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