________________ ( xiv ) स्तुतिपरक साहित्य-आराध्य की स्तुति करने की परम्परा भारत में प्राचीनकाल से ही रही है। भारतीय साहित्य की अमरनिधि वेद मुख्यतः स्तुतिपरक ग्रन्थ है। वेदों के अतिरिक्त भी हिन्दूपरम्परा में स्तुतिपरक साहित्य की रचना होती रही है, किन्तु जहां तक श्रमणपरम्पराओं का प्रश्न है वे स्वभावतः अनीश्वरवादी बौद्धिक परम्पराएं हैं। श्रमणधारा के प्राचीन ग्रन्थों में हमें साधना या आत्मशोधन की प्रक्रिया पर ही अधिक बल मिलता है, उपासना या भक्ति का तत्व उनके लिए प्रधान नहीं रहा / जैनधर्म भो श्रमणपरम्परा का धर्म है। इसलिए उसकी मूल प्रकृति में स्तुति का कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं है। जब जैन परम्परा में आराध्य के रूप में महावीर को स्वीकार किया गया, तो सबसे पहले उन्हीं की स्तुति लिखी गयी, जो कि आज भी सूत्रकृतांगसूत्र के छठे अध्याय के रूप में उपलब्ध होती है।' सम्भवतः जैनधर्म के स्तुतिपरक साहित्य का प्रारम्भ इसी 'वीरत्थुइ' से है / वस्तुतः इसे भी स्तुति केवल इसी आधारपर कहा जा सकता है कि इसमें महावीर के गुणों एवं उनके व्यक्तित्व के महत्त्व को निरूपित किया गया है / इसमें स्तुतिकर्ता महावीर से किसी भी प्रकार की याचना नहीं करता। उसके पश्चात् स्तुतिपरक साहित्य के रचनाक्रम में हमारे विचार से “नमुत्थुणं" जिसे 'शक्रस्तव' भी कहा जाता है, निर्मित हुआ होगा वस्तुतः यह अहंत या तीर्थकर को बिना किसी व्यक्तिविशेष का नाम निर्देश किये सामान्य स्तुति है जहाँ सूत्रकृतांग को 'वोरत्युइ' पद्यात्मक है, वहाँ यह गद्यात्मक है। दूसरी बात यह कि इसमें अर्हन्त को एक लोकोत्तर पुरुष के रूप में हो चित्रित किया गया है; 'वीरस्तुति' में केवल कुछ प्रसंगों को छोड़कर सामान्यतया महावीर को लोक में श्रेष्ठतम व्यक्ति के रूप प्रस्तुत किया गया है, लोकोत्तर रूप में नहीं / यद्यपि आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध में वर्णित उनके जोवनवृत्त को अपेक्षा इसमें लोकोत्तर तत्त्व अवश्य ही प्रविष्ट हुए हैं। हमें तो ऐसा लगता है कि प्रारम्भ में 'वीरत्थुइ' के रूप में 'पुच्छिसुणं' और 'देविदत्यओ' रूप में 'नमोत्थुणं' ही रहे होंगे / क्योंकि 'देविस्थओ' का भी एक अर्थ देवेन्द्र के द्वारा की गयी स्तुति होता है, 'नमुत्थुणं' को जो 'शकस्तव' कहा जाता है, वह इसी तथ्य की पुष्टि करता है। स्तुतिपरक साहित्य में इन दोनों के पश्चात् 'चविंशतिस्तव' (लोगस्स-चोवीसत्थव) का स्थान आता है / लोगस्स का निर्माण तो चौबोस 1. सूत्रकृतांगसूत्र-मुनि मधुकर, छठा अध्ययन-'वोरत्युइ'