Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 14
________________ विवेचन के बीच पिशेल द्वारा सम्पादित देशीनाममाला के द्वितीय संस्करण की प्राधार बनाया गया है। अध्याय 3-तीसरा अध्याय देशीनाममाला के साहित्यिक अध्ययन से सम्बन्धित है । देशी शब्दो का प्रयोग दिखाने की दृष्टि से प्राचार्य हेमचन्द्र ने पूरे कोश मे 634 गाथाश्रो की रचना की है। ये गाथाए साहित्यिक सौन्दर्य की दृष्टि से अत्यन्त उच्चकोटि की है । इनकी भावतरलता, सरसता एव काव्यात्मक प्रभावात्मकता अत्यन्त सराहनीय है। इन पद्यो को देखते हुए, प्राचार्य द्वारा इम ग्रन्थ का, दिया गया रयणावली नाम भी सार्थक लगने लगता है। उदाहरण की इन गाथाश्रो मे ऐहिकतापरक ” गार, रति-भावना, नख-शिख-चित्रण, रणाङ्गगतवीरता, प्रकृति के सुन्दर मनमोहक चित्र तथा विविध लोकव्यवहारो एव उत्सवो का चित्रण हुया है। मचन्द्र की इन गाथाश्रो की तुलना सभी दृष्टिग्रो से 'हाल' की गाहासत्तमई' से की जा सकती है । गाथाश्रो की संख्या भी ‘रयणाबली' की सतसई ग्रन्थ परम्परा मे ला वैठाती है । विषयवस्तु की दृष्टि से 'रयणावली' (देशीनाममाला) की उदाहरण की गाथानो को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (1) लौकिक प्रेम और शृगार से सम्बन्धित पद्य । (2) कुमारपाल की प्रशस्ति से सम्बन्धित वीर-भावना के उद्-भावक पद्य । (3) विविध लोकाचारो, सामाजिक एव नैतिक नियमो, देवी-देवतामो तथा भिन्न-भिन्न प्रादेशिक रीति-रिवाजो व अघ विश्वासो से सम्ब धित पद्य । इन तीन वर्गों में बाँटकर देशीनाममाला के साहित्यिक महत्व का प्रतिपादन करने का प्रयास किया गया है । विषय को भलीभाति स्पष्ट करने के बाद शास्त्रीय दृष्टि से रयणावली के छन्दो उसकी भाषा तथा अलकार योजना प्रादि पर भी विचार किया गया है । साहित्यिक दृष्टि से 'देशीनाममाला' के अध्ययन का यह प्रथम प्रयास है । सभवत: इसकी गाथाम्रो की क्लिष्टता ने विद्वानो को इसके साहित्यिक सो दर्य से अवगत होने से दूर ही रखा है। देशीनाममाला के पद्यो का अनुवाद सचमुच एक दुसाध्य कार्य है। इस अध्याय में लगभग 100 पद्यो का अनुवाद दिया गया है । अध्ययन के एक निश्चित दायरे मे बधे होने के कारण, रयणावली के कितने ही सुन्दर पद्यो का समावेश नही किया जा सका । यह भविष्य के अनुसधित्सुप्रो के लिए एक सराहनीय कार्य हो सकता हैं। शोधकर्ता इस कार्य मे सलग्न भी है । यदि रयणावली के सभी पद्यो का अनुवाद कर दिया जाये तो यह निश्चित ही 'गाहासतसई' और 'वज्जालग्ग' जैसे श्रेष्ठ काव्य-ग्रन्थो की कोटि मे रखा जा सकता है। इस अध्याय मे निहित अध्ययन का यही निष्कर्ष हैं। अध्याय 4 - इस अध्याय मे देशीनाममाला की शब्दावली का सास्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। देशीनाममाला की शब्दावली का सम्बन्ध युग-युगो से व्यवहृत होती प्रायी जन-भापात्रो से है। इन शब्दो मे पता नही कितने प्राचीन सास्कृतिक प्रतीक छिपे पड़े है। इन्हीं प्रतीको का स्पष्टीकरण इस अध्याय का प्रमुख विषय रहा है । इस अध्याय का अध्ययन क्रम प्रकार है (1) वेशीनाममाला का सामाजिक वातावरण-इसके अन्तर्गत सामाजिक एव पारिवारिक सम्बन्धो, रहन-सहन, रीति-रिवाज, वेश-भूषा व खान-पान, धूत

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