Book Title: Deshi Nammala ka Bhasha Vaignanik Adhyayan
Author(s): Shivmurti Sharma
Publisher: Devnagar Prakashan

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Page 12
________________ 2 ] प्रतिपादन न कर सके । इस क्षेत्र में रामानुजस्वामी ने पहला कदम रखा, पर वे भी देशीनाममाला की ग्लासरी तैयार करने और इसके शब्दो की सस्कृत से कुछ भ्रामक व्युत्पत्तिया देने के अतिरिक्त कुछ न कर सके । इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रो० मुरलीधर वेनर्जी ने इस दिशा मे स्तुत्य प्रयास किया । उन्होने विस्तृत भूमिका और आलोचनात्मक टिप्पणिया तथा अग्रेजी अनुवाद के साथ इसे दो भागो मे विभक्त करके प्रकाशित कराया। परन्तु इसका प्रथम भाग (भूमिका तथा मूलपाठ) ही अाज प्राप्त है । द्वितीय भाग सम्भवत वे पूरा नहीं कर सके । मुरलीधर वेनर्जी के बाद अनेको ग्रन्थो मे छिट पुट उल्लेखो के रूप मे ही देशीनाममाला का नाम प्राता है । देशी शब्दो का एकमात्र ग्रन्थ होने के कारण अधिकारी विद्वान इसका उल्लेख तो करते रहे है, पर गहराई मे उतरकर किसी ने भी इसके महत्व-प्रतिपादन का प्रयास नही किया। इस दिशा मे इस शोव प्रवन्ध को प्रथम प्रयास कहा जा सकता है । देशीनाममाला पर कार्य करते-करते, परम्परा प्रसिद्ध विद्वानो की अनेको भ्रान्तिया भी सामने आ गयी हैं, जिन्हे विना किसी लाग-लपेट के साफ-साफ स्पष्ट कर दिया गया है । पूरे शोधकार्य के बीच शोधकर्ता का अपना एक निश्चित दृष्टिकोण रहा है सर्वत्र ग्रन्थकार के साथ चलकर ही समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। देशीनाममाला को लेकर प्राचार्य हेमचन्द्र की तरह-तरह की पालोचनाएं हुई हैं। बुल्हर ने तो इसे 'देशी' शब्दो का कम तद्भव शब्दो का अधिक कोष माना। परन्तु मैंने सर्वत्र हेमचन्द्र के दृष्टिकोण की रक्षा करने का प्रयास किया है। प्राचार्य हेमचन्द्र ने जिस दृष्टि से इस ग्रन्थ का सकलन किया है, उनकी उमी दृष्टि को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। एक बात यहा और भी स्पष्ट कर देने की है- जहा तक देशी शब्दो के स्वरूप, उनके उद्भव और विकास का प्रश्न है, परम्परा के विद्वानो ने तरह-तरह का वितण्डा खडा किया है। कोई इन्हे प्रार्येतर शव्द वताता है तो कोई सस्कृत का ही विकार । परन्तु इन सभी विवादो से परे मैंने देशी शब्दो को युग युगो से चली आयी सामान्य जन-भापा से सम्बन्धित माना है। प्राचार्य हेमचन्द्र का भी लगभग यही मत है । सामान्य जनजीवन में प्रचलित बोल चाल के शब्द ही, देशीनाममाला के सकलन के प्रमुख प्राधार रहे हैं हेमचन्द्र ने लोक में व्यवहृत और साहित्य मे अव्यवहत शब्दो की ही गणना इस कोपग्रन्थ मे की है। ये तो हुए कुछ पूर्वनिश्चित दृष्टिकोण, जो अध्ययन की दिशा का निर्धारण करते हैं; शोध प्रवाध की विविध दिशायो का सक्षिप्त उल्लेख नीचे किया जा रहा है। पूरा शोध-कार्य दो खण्डो और सात अध्यायो मे वाट कर सम्पन्न किया गया है। प्रथम खण्ड पालोचनात्मक है-जिसमे लगातार चार अध्याय है। इन अध्यायों

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