Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 02
Author(s): Shripad Krishna Belvalkar
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 230
________________ E. Sárasvata Colophon इति श्रीमालकुल श्रीमालभारमालव संखलालंकार श्रीपुंजसजविनिर्मिता सारस्वतटीका संपूर्णा ॥ Then follow these verses व्याख्या विशेषोन्नयनप्रसंगान् श्रीपुंजराजो यदिहाभ्यदत्त: ( १ 'वत्त ) । अविस्तरं चारुविनिश्चितार्थ सर्व समूलं समपेक्षितं तत् ॥ आत्मयुक्ति बलशालिनां च वो (? वचो ) विस्तरान्मम बिभेति भारती । तेन दुर्नयमिवाश्णोचिते पूर्वकोविदमते निलयते ॥ गर्वाज्ञानतमो निमीलितमाषुये संसुद्वेष्टषित त्वा नदधतीकारः परीक्षाविधौ । (The first two lines appear to be corrupt in many places) किं त्वेते गुणदोषयोः समदृशो वै[ राग्य ] निष्ठा इव । श्रेष्ठाः हंत परोक्तिनिस्पृह धियस्तस्मादमीभ्यो नमः ॥ Then follow the verse हिमालयादामलयाचलं etc. Verse 17 reads thus : 217. प्रतिगृहमभिगम्य स्वर्णनिष्काचि (१ वि ) तानामुपचितकुमु (? ' )कानां मोदकानां प्रदानैः । विदलितदुरवस्थान लक्ष्यसंख्यान् गृहस्थान् अतुलितमहिमा यः क्षामकालेऽभ्यदन्( 'नंदत् ? ) After 24th verse we have another Colophon : इति श्रीमंत्रिराजश्रीपुंजराजविनिर्मिता श्रीसारस्वतटीका संपूर्णा ॥ लिखिता संवत् १६२२ वर्षे आसोमासे । शुक्लपक्षे ... चंद्रवारे " नौलाहीनगरे लिखितं वसता ॥ Reference ~ Same as No. 240 of 1892-95 [ = Serial No. 183 above] ete. सारस्वतदीपिका Description No. 188 Size - 10g in by 5 in. Extent – ( 135 – 11 ) 124 leaves, 17 lines to a page, about 50 letters to a line. A Commentary on Sarasvata called Dipikā 497 1884-87 1 Country paper. Devanagari characters with q and blank square spaces in the centre, clear and legible writing. Foll. 39 and 103 rather torn, as also the first and the last. Generally correct. Complete, but wanting the first 11 leaves. 28 [Dee. Cat. Vol. 11, Pt. II]

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