Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 02
Author(s): Shripad Krishna Belvalkar
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

Previous | Next

Page 243
________________ 230 Grammar Description - Old country paper, worm-eaten in the margins and much embrowned by exposure. Devapāgari characters, clear and legible writing fairly accurate. Margins ruled and red chalk occasionally used. Wants the first fer; the last two afers complete. Age - Samvat 1740. Author -Sahajakirti. Ends - यस्य स सुरासुरनराकारमधुपापीतपंकज इति ॥ इति परिसमाप्तौ समाप्तेयं कृदंत प्रक्रिया ॥ तत्समाप्तौ समाप्तेयं सारस्वती प्रक्रिया ॥ श्रीमद्वाचकरत्नसारसुगुरोः शिष्यावभूतामुभौ श्रीमद्वाचकरत्नहर्षविबुधः श्रीहेमसनंदनः । तच्छत्या सहजादिकीर्तिविहिते सारस्वतीप्रकृ( क्रि)या व्याख्याने लभते स्म पूर्तिममला कृत्संज्ञका प्रक्रिया । इति श्रीसहजकीर्तिविहितेऽतीव सुखबोधे सारस्वतीवार्तिके कृदंताधिकारः॥ पुरा श्रीवीरजैनेंद्रपदानुक्रमतो वराः। श्रीजिनेश्वरनामानोऽभवन् भट्टारकोत्तमाः ॥ १॥ बभूवुर्जिनदत्ताः श्रीजिनादिकुशलास्ततः । येषामद्यापि भूपीठे महिमा परिकीर्त्यते ॥ २॥ तद्वंशे सूरयो जैनचंद्राः प्रौढयशोधराः। जैनसिंहाः सुधीवर्गनता जाता गुरुश्रियः ॥३॥ राजते प्रौढसाम्राज्यभाजः संप्रति सूरयः । श्रीजैनराजनामानो वसुधागीतसद्गुणाः ॥४॥ भाचार्यास्तथा श्रीमजिनमारगसूरयः। गणे यशोधने श्रीमत्पक्षे खरतराभिधे ॥५॥ श्रीक्षेमकीर्तिशाखायां पाठकाः श्रुतसागराः । क्षेमराजास्तथा श्रीमच्छ्रीसुंदरसंज्ञकाः ॥ ६ ॥ श्रीमत्कनकनिदाकाः पाठकाः सप्तपाठकाः । श्रीसिद्धांतरहस्यानां पदमुद्धितसत्क्रियाः ॥७॥ श्रीलक्ष्मीविनयास्तेषां शिष्याः श्रीवाचकोत्तमाः। तेषां शिष्यावभूतां द्वौ वाचकौ पुन्य(ण्य) नामकौ ॥ ८॥ श्रीमहिमादिरंगश्रीरत्नसारगणीश्वरौ । शिष्यौ श्रीरत्नसाराणाममूतां सक्रियोत्तमौ ॥९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366