Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad
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दसमं
णिञ्जुतिचु
सभिक्खु अज्झयणं
पढमो उद्देसो
योगनिसेवणेण अबंभाणुमोदैणयो अबंभचारिणो भवंति । संचयिया धण[-धण्ण-कुविय [तिगतिग]परिग्गहे
निरता, धणं हिरण्णादि, धण्णं सालिमादि, कुवितं उवक्खरो कंस-दूसादि । सच्चित्ता-ऽचित्त-मीसाण दव्वाण ण्णिजयं मण-वयण-कायजोगेहिं तिग-तिगपरिग्गहे निरता। सच्चित्तं पाणियादि भुंजंता पयमाणगा य, सतमपतंता वि दसका-|| उद्दिट्ठभोतिया ॥९॥२३८॥ तिगतिगपरिग्गहे णिरता य एवं--- लियसुत्तं
करणतिए जोगतिए सावजे आयहेतु पर उभए । ॥२३२॥
अट्ठा-Sणट्ठपवत्ते ते विजा दव्वभिक्खु त्ति ॥१०॥ २३९॥ करणतिए० गाहा । करण-कारणा-ऽणुमोदणं मण-वयण-कायजोगेहिं आरंभे आयहेतुं सरीरोवभोगनिमित्तं, मित्त-सयणादीण परट्ठा उभयट्ठा वा । अट्ठा सरीरादीण अणट्ठाए परिहासादीहि पवत्तमाणा ते विजा दव्यभिक्खु त्ति ॥१०॥२३९॥ एस दव्वभिक्खू । भावभिक्खू इमेण गाधापुव्वद्धेण भण्णति, तं०
आगमतो उवउत्ते तग्गुणसंवेदए तु भावम्मि । आगमतो उवउत्ते. अद्धगाहा । भावभिक्खू दविहो, तं०-आगमतो णोआगमतो य । आगमतो जाणए | उवउत्ते। णोआगमतो तग्गुणसंवेदए भिक्खुगुणसंफासओ तग्गुणसंवेदओ। तेणाधिकारो। भावभिक्खू समत्तो।। भिक्खूनिक्लेवो इति गतं १ । बितियं निरुत्तमिति दारं । तं०
तस्स निरुत्तं भेदग-भेदण-भेत्तव्वएण तिधा ॥११॥२४॥
२३२॥
१ अब्रह्मानुमोदनात् ॥ २ मोदमोदणयो अबंभ मूलादर्शे ॥
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