Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad

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Page 506
________________ | दुक्खं लभते दुल्लभो पमादबहुलत्तणे सति । भो! इति तधेवाऽऽमंतणं । गिहाणि संति जेसिं ते गिहिणो तेसिं | दुग्गतिपतणधारणातो धम्मो दुल्लभो पुणबोधिरूवो । धम्मालाभे य दुक्खपरंपरा इति सुहनिमित्तं धम्मे रती करणीया। दुलहो गिहीण धम्मो गिहत्थवासे पमादबहुलम्मि । मोत्तूण गिहेसु रति रतिपरमा होह धम्मम्मि ॥१॥है॥ अयमवि गिद्दवासमज्झावसंताणं दोसो। तं जहा आयंके से वधाए होति । सूलादिको आसुकारी सरीरबाधाविसेसो आतंको । समाणजातीयवयणेण रोगोपादाणमवि, सो पुण कुट्ठादिको दीहो रुयाविसेसो। सो य गिहवासमज्झावसंताणं आहार-विसमज्वरादि-भारवहणायासा-ऽसीलणिसेवणातो। आयंके से वधाए होति । रोगा-ऽऽतंका य ऐहिकसुखाणुभवणविग्घभूता इति धम्मे रतेण भवितव्वं। दुलभं गिहीण धम्मे सुहमातंकेहि विग्धितसमग्धे । तम्हा धम्मम्मि [रति] करेध विरता अहम्मातो ॥१॥ किञ्च-संकप्पे से वधाए होति। आतंको सारीरं दुक्खं, संकप्पो माणसं । तं च पियविप्पयोगा-5 णिट्ठसंवास-सोग-भय-विसादादिकमणेगहा संभवति । इट्ठाण वि सण्णेज्झे सद्द-प्फरिस-रस-रूव-गंधाणं। का मणुयसुहम्मि रैती अरति-भय-विओयविरसम्मि॥१॥ एवं च विसेसेण धम्मे रती करणीया, जतोसोवक्केसे गिहवासे । सह उवक्केसेहिं [ सोवक्केसे]। उवक्केसा पुण-सी-उण्ह-भय-परिस्सम-किसि-पसुपाल १ ह अष्टावित्यर्थः॥ २ रती माण-भय वृद्ध० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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