Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad
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वोस?-चत्तदेहे अकुठे वा मादि-सगारादीहिं, हते कसातीहिं, लूसिते पादकड्ढणिमादीहि, एवं कीरमाणे वि पुढवीसमए जघा पुढवी अक्कोसादीहिं ण विचलति तथा सो पुढविसमो तथा भवेजा। दिव्वादिविभवेसु अणिट्ठद्धचित्ते अणिदाणे, णचणगादिसु अकुतूहले, स भिक्खू॥१३॥ पुढवीसमए मुणी भवेज ति अणंतरमुद्दिटुं, ण तत्थ अविण्णाणरूवं समाणीकन्नति, किंतु
५१५. अभिभूत काएण परीसहाई, समुहरे जाति-वधातो अप्पगं ।
विदित्त जाती-मरणं महब्भयं, भवे रते सामणिए स भिक्खू ॥१४॥
५१५. अभिभूत कारण वृत्तम् । अभिमुहं भविऊण अभिभूत जिणिऊण, कायो सरीरं तेण, छुधादीणि बावीस परीसहाणि । छुहा-पिवासा-सी-उण्हादयो परीसहा पायेण कायसहणीया अतो कायेणेति भण्णति। जे वा बौद्धादयो “चित्तमेव णियंतव्य"मिति तप्पडिसेधणत्थं कायवयण। समुद्धरे एकीभावेण उद्धरे। जातिवधो पुवभणितो ततो, अप्पगं। दुस्सहपरीसहसहणे इमं आलंबणं-विदित्तु जाती-मरणं महब्भयं जाणिऊण जम्म जाती, मरणं मचू, तमुभयं जाणिऊण महाभयं भवे रते सामणिए समणभावो सामणियं तम्मि रतो भवे। एवं भवति स भिक्खू ॥१४॥ भवे रते सामणिए इति सामणियमुपदिटुं। तस्स सरूवनिदेसत्थं भण्णति
१जाइपहाओ अचू० वृद्ध. विना। "जातिग्गहणेण जम्मणस्स गहणं कयं, वधगहणेण मरणस्स गहणं कयं" इति वृद्धविवरणे ॥ २ तवे रते सर्वासु सूत्रप्रतिषु हाटी० अव० ॥
का०६१
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