Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad

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Page 480
________________ ५०५. वहणं तस थावराण होइ, पुढवि- दग कट्टणिस्सियाणं । तहा उद्देसियं ण भुंजे, णं पए ण पयावऐं स भिक्खू ॥ ४ ॥ ५०५. वहणं तस-धावराण० वृत्तम् । वधणं मारणं तं तसाण 'बितिंदियादीण थावराण य पुढविमादीणं उद्देसिए संभवति । जतो वधणपरिहारी तम्हा उद्देसियं ण भुंजे, ण पए ण पयावए । उद्देसिय परिद हरणेणाणुमोदणं निसिद्धमेव । अण्णेण वि लोगजत्तातिणा केणति कारणेण ण पए ण पयावए स भिक्खू ॥ ४॥ उद्देसियपरिहरणं भगवतैवोपदिट्टं, ण परेण, अतो सव्वहा— Jain Education International ५०६. रौतिय णायपुत्तवयणं, अंत्तसमे मण्णेज्ज छप्पि काए । पंच य फासे महव्वताणि, पंचासव संवरे स भिक्खू ॥ ५ ॥ ५०६. रोतिय णायपुत्त० वृत्तम् । रुयिं उप्पायेऊण अप्पणो रोयिय णातकुलुप्पण्णस्स णातपुत्तस्स भगवतो वद्धमाणसामिणो वयणं तं रोयेऊण अत्तसमे मण्णेज्ज अप्पणो तुल्ले “जध मम पियंण दुक्खं " [अनुयोग-पत्रं २५६] एवमण्णेसामवीति एवं मण्णेज्ज जाणेज्जा, मण्णमाणो य आ ( १ का ) तवधं परिहरेज्जा, छप्पि पुढवि १ पुढवित कट्टु खं १ अचू० वृद्ध० विना ॥ २ णो वि पए अचू० वृद्ध० विना ॥ ३ए जे स खं ३-४ जे० अचू० वृद्ध० विना ॥ ४ द्वीन्द्रियादीनाम् ॥ ५ रोइयनायपुत्तवयणे सर्वासु सूत्रप्रतिषु ॥ ६ अप्पसमे शु० ॥ ७ “ पंचासवसंवरे णाम पचिंदियसंवुडे" इति वृद्धविवरणानुसारेण श्रीहरिभद्रपादादिभिः “पञ्चाश्रवसंवृतश्च" इति व्याख्यातं सम्भाव्यते । संवरए जे स खं २-४ शु० । संवरए य जे स खं १-३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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