Book Title: Dasakaliya Suttam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Prakrut Granth Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 483
________________ णिञ्जु दसमं तिचु णिजुयंदसकालियसुत्तं ॥२३९॥ भिक्खू ॥ ८॥ भिक्खुभावप्पसाधगमेव आहारसंविभागकरणं सपक्खे भण्णति५१०. तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइम साइमं लभित्ता । सभिक्खु अज्झयणं छंदिय साधम्मियाण मुंजे, भोच्चा सञ्झायरते य जे स भिक्खू ॥ ९॥ पढमो ५१०. तहेव असणं० वृत्तम् । तहेवेति भिक्खुत्तणे कारणस्स निरूवणं । असण-पाण-खाइम- IT उद्देसो साइमाणि लभित्ता छंदिय साधम्मियाण मुंजे छंदो इच्छा, इच्छाकारेण जोयणं छंदणं, एवं छंदिय, साधम्मिया समाणधम्मिया साधुणो जति गेण्हंति तेसिं दाऊण । सेसं अगहिते कतविणयो सव्वं एतेण कमेण भुंजिऊण ण विकधा-विसोत्तियारते, किंतु पंचविहे सज्झायरते य जे स भिक्खू ॥९॥ आहारसमुप्पाइयप्राणो सुधं विकहा-विग्गहेहि अच्छति तन्निवारणत्थं भण्णति५११. ण य विग्गहियं कधं कहेजा, ण य कुप्पे णिहुतिदिए पसंते । संजमधुवजोगजोगजुत्ते, उवसंते अॅविहेढएं स भिक्खू ॥ १० ॥ ५११. [ण य विग्गहियं० वृत्तम् ।] भुत्तुत्तरकालं ण य विग्ग[हियं क]हं ण इति पडिसेहसदो | विग्गहकधानिवारणत्थं । चसदो पुव्वकारणसमुच्चयत्यो । विग्गहो कलहो, तम्मि तस्स वा कारणं विग्गहिता२५ जधा-अमुगो एरिसो राया देसो वा, एत्थ सज्जं कलहो समुप्पज्जति । जति वि परो कहेज तथा वि 'अम्हं रायाणं देसं वा ॥२३९॥ १ विकथा-विश्रोतसिकारतः ॥ २ सुखम् ॥ ३ बुग्गहियं सर्वासु सूत्रप्रतिषु ॥ ४°वजोगजुत्ते अचू० विना ॥ ५ अविहेडए खं ४ अचू० विना ॥६°ए जे स खं १-२ जे० शु०॥ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552