Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ चरित्रनायक चन्द्रप्रभ प्रथमभव (प्रथमपर्व पृ. २) धातकीखण्ड द्वीप के मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी । वहां कनकप्रभ नामका पराक्रमी राजा राज्य करता था। उसकी रूपगुण से सुसपन्ना सुवर्णमाला नाम की रानी थी और समस्त कलाओं में कुशल पद्मनाभ नामका पुत्र था । एक दिन राजा कनकप्रभ अपने अन्तःपुर के गवाक्ष में बैठा हुआ नगर की शोभा देख रहा था । देखते देखते उसकी दृष्टि एक अर्ध शुष्क तालाब पर पड़ी । उस तालाब में कीचड़ बहुत था और पानी कम । उसमें एक वृद्ध बैल फंसा हुआ अपने जीवन की अन्तिम सासें ले रहा था । वेदना से कराहते हए वद्ध बैल को देखकर राजा सोचने लगा - जब यह बैल युवा था तब अपने उन्मत्त यौवन से अन्य प्राणियों को तथा मनष्यों को डराता था। अब वृद्ध होने पर तालाब से भी बाहर नहीं निकल सकता । प्रत्येक प्राणी की भी यह अवस्था होती है। जब यह यौवन को पार कर वृद्धावस्था में प्रवेश करता है तो उसकी सारी अवस्थाएँ क्षीण हो जाती है । गात्र शीथिल हो जाते हैं। वह सब तरह से अपने आपको असमर्थ पाता है। संसार के सभी पदार्थ नश्वर है । उन में स्थिरत्व की क्या आशा की जा सकती है ? संसार में केवल धर्म ही शाश्वत तत्त्व है । इस के आचरण से ही व्यक्ति शाश्वत सुख को प्राप्त करता है । इस प्रकार संसार की असारता का विचार करते करते उसे वैराग्य हो गया। उसने अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्यगद्दी पर स्थापित कर आचार्य श्रीधर के समीप दीक्षा धारण की और अपने जीवन को सार्थक किया (गा.३२-१०८) (द्वितीय पर्व पृ. ५) पिता के दीक्षित होने पर महाराजा पद्मनाभ न्यायपूर्वक राज्य का संचालन करने लगा। उनके राज्यकाल में प्रजा अत्यन्त सुखी थी । कालान्तर में रानी सोमप्रभा के साथ विषय सुख का अनुभव करते हुए उसे एक सुन्दर पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । इसका नाम सुवर्णनाभ रखा । बाल्यकाल में सुवर्णनाभ ने अनेक विद्याओं में कुशलता प्राप्त की । युवावस्था में अनेक राजकुमारियों के साथ उसका विवाह हुआ । राजा ने उसे युवराज पद पर अधिष्ठित किया । एक दिन राजा अपने सभासदों के साथ सभा मण्डप में बैठा हुआ अपने सामन्तों से वार्तालाप कर रहा था। इतने में उद्यानपालक ने राजसभा में प्रवेश कर राजा को प्रणाम किया और बोला- देव ! सुगन्धिपवन नाम के उद्यान में श्रीधर नाम के प्रसिद्ध आचार्य अपनी शिष्य मण्डली के साथ पधारे हैं । उनके आगमन से उद्यान का सारा वातावरण अत्यन्त प्रसन्न हो उठा है । उद्यान स्थित अनेक प्राणी अपने वैरभाव का त्याग कर उनकी उपासना कर रहें हैं । ऐसे मुनिवर के दर्शन करने से एवं उनका उपदेश सुनने से हमारा जीवन अवश्य सफल होगा। उद्यानपालक की बात सुनकर राजा परिवार के साथ उद्यान में पहुंचा। मुनि को विधिपूर्वक वन्दन और उनके गुणों की प्रशंसा कर उनके समीप बैठ गया । मुनि ने संसार की असारता बताते हुए धर्म का स्वरूप समझाया । मुनि का उपदेश सुन राजाने अत्यन्त हर्ष प्रकट करते हुए पूछा - भगवन् ! मैं अपने पूर्व भव का वृत्तान्त आप से सुनना चाहता हूँ । कृपया आप मेरे पूर्व जन्म का वृतान्त कहिए । राजा के आग्रह से आचार्य ने कहा - 'यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो तुम ध्यानपूर्वक अपने अतीत भव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 246