Book Title: Chale Man ke Par
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 6
________________ अनुक्रम of तं ; 3 ; चलें, मन के पार अस्तित्व की जड़ों में घुटन का आत्म-समर्पण ४. आइये, करें जीवन-कल्प ५. यह है विशुद्धि का राजमार्ग वर्तमान की विपश्यना चित्तवृत्तियों के आरपार ८. दृष्टाभाव : ध्यान की आत्मा ९. ऊर्जा का समीकरण १०. दस्तक शून्य के द्वार पर ११. खोलें, अन्तर के पट जलती रहे मशाल वृत्ति : बोध और निरोध १४. चैतन्य-बोध : संसार से पुनर्वापसी १५. संबोधि का कारण १३. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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