Book Title: Catalogue of Gujarati Manuscripts
Author(s): Punyavijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 695
________________ ६८२ हर्णकीर्तिसूरि (ना.त.) विजयशेठ-बिजयाशेठाणी रास ले.स. १९९ शतक (अनु.); हाथकागळ पत्र १९; १२.२४ १४.५ से.मि. पद्य (तूटक). __ कर्ता-नागोरी तपगच्छमां चंद्रकीर्तिसूरिना शिष्य छे. अमना समय वि.स. १७मी सदीना छे. (जै. गू. क. भा. १, पृ. ४६९). पत्रो १ थी १४ नथी. कृति पत्र १५थी शरू थाय छे. कृति पूर्ण छे. प्रति तूटक छे. प्र.स./५३९६ परि./८६१५ हर्षविजय नल-दमयंती रास ले.स. १७मुशतक (अनु.); हाथकागळ पत्र ३: २६.२४११.३ से.मि. पद्य ५१. प्र.स./५३९७ परि./६९५७ हर्षविजय (त.) शांब प्रद्युम्न रास र.स. १८४२; ले.स. १८९४; हाथकागळ पत्र ८५: २५.५४१२ से.मि. . कर्ता-तपगच्छमां हीरविजयसरि शाखाना शुभविजयनी परंपरामां मोहनविजयना शिष्य छे. अमना समय वि.स. १९मी सदीना छे. (जै. गू क. भा. ३, खं. २, पृ. १७३. परंपरा प्रतिमांथी पण मळे छे. रचना उमतामां थई. प्रेमविजय > दीपविजय>प उमेद विजयगणिना ५. जितविजयगणिए, युवानसिहना राज्यमा इडरगढमां प्रति लखी. प्रस./५३९८ परि./१७८७ हीरकुशल (त.) द्रौपदी रास र.स. १६३९ ले.स. १७मु शतक (अनु.); हाथकागळ पत्र १५, २६.७४ १०.६ से.मि. पद्य ४२२. कर्ता-तपगच्छमां विमलकुशलना शिष्य छे. अमना समय वि.स. १७मो शतक छे (जे. गू. क. भा. १, पृ. २५३). आ रचना जै. गू. क.मां नेांधायेली नथी. प्रति जीर्ण छे. प्र.स./५३९९ परि./२७९५ हीरानंद (पी.) कलिकाल स्वरूप रास ले.स. १६६९: हाथकागळ पत्र १ थी २; २६४११ से.मि. पद्य ५६. का-पीपलगच्छमां वीरदेवरिनी परंपराना वीरप्रभना शिष्य छे. अमना समय वि.स. १५मा सेकाना छे. (जे. गू. क. भा. १, पृ. २५). प्र.स./५४०० परि./३८०८/१ दशार्णभद्र रास ले.स. १८९ शतक (अनु.); हाथकागळ पत्र २: २५.५४१.०.५ से.मि. पद्य ३१. प्र.सं./५४०१ परि./५९४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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