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भाग आहे. पछी नीचेना सौधर्म देवलोकनी उत्कृष्ट स्थिति बे सागरोपमनी छे ते तेनी साथे भेलीए त्यारे त्रीजा सनत्कुमार देवलोकना पहेला प्रतरनी बे सागरोपम अने एक सागरोपमना बारीया पांच भाग उपर एटली उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति थाय.
वीज रीते बीजा प्रतरे बे सागरोपम अने उपर बारीया दश भाग थाय. त्रीजे प्रतरे त्रण सागरोपम ने उपर बारीया त्रण भाग 'थाय. ए प्रमाणे प्रतरे प्रतरे बारीया पांच पांच भाग वधारवा, जेथी छेल्ला बारमा प्रतरे बराबर सात सागरोपमनुं उत्कृष्ट आयुष्य थाय. ए
ते माहेन्द्रे साविक सात सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति कहेवी. ए प्रमाणे अरना सर्व देवलोकना प्रतरने विषे आयुष्य स्थिति काढवी. आयुष्यनी स्थिति यंत्रमां आपी छे तेमांथी जोइ लेवी ॥ २१ ॥ अहिं देवताना आयुष्यनुं प्रथम द्वार सम्पूर्ण थयुं ॥
हवे देवगतिने विषे भुवन सम्बन्धी बीजुं द्वार कहे छे:असुरा नाग सुवन्ना, विज्जु अग्गी य दीव उदही अ ॥ दिसि पवण थणिय दसविह, भवणवई तेसु
दुदु इंदा ॥ २२ ॥ ४
अर्थः- चार निकायना देवतामा प्रथम भुवनपति देवतानां भुवन कहेवाने माटे भुवनपतिनी दश जातिनां नाम कहे छे. १ ( असुरा) के० असुर कुमार, २ ( नाग ) के० नाग कुमार, ( सुन्ना) के० सुवर्ण कुमार ४ ( विज्जु ) के० विद्युत्कुमार, ५ ( अग्गीय ) के० अग्नि कुमार, ६ ( दिव) के० द्वीप कुमार, ७ ( य ) के० अने ( उदही ) के० उदधि कुमार, ८ ( दिसि ) के० दिशि कुमार, ९ ( पत्रण ) के० वायु कुमार, अने १० ( थणिय )