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हवे सनत्कुमारादिक देवलोकना प्रत्येक प्रतरोने विषे जयन्य तथा उत्कृष्ट आयुष्यनी स्थिति जाणवानो उपाय कहे छः
सुरकप्पठिइविसेसो, सगपयरविहत्त इच्छ संगुणिओ॥ हिछिल्लठिइसहिओ, इच्छियपयरंमि उक्कोसा ॥ २१ ॥२-२. ___ अर्थः-( सुरकप ) के० देवोना कल एटले देवताओने निवास करवाना बार देवलोक ते कल्प कहेवाय छे अने नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमान ते कल्लातीत कहेवाय छे. ते सुरकल्पना उत्कृश आयुष्यनी जे ( ठिइ ) के० स्थिति छे तेनो (विसेसो ) के० विश्लेष करवो, अर्थात् अधिक स्थितिमांथी ओछी स्थिति काही नाखवी. एम कर्या पछी जे वधे तेने ( सगपयरविहत्त ) के० पोत पोताना प्रतरे करीने येहेंचीए. पछी ( इच्छसंगुणिओ) के० ए स्थाने वांछित प्रतर साथे गुगी. तेनो जे आंक आवे तेने (हिडिल्लठिइसहिओ) के० हेठली उत्कृष्ट स्थिति साथे एकठो करीए त्यारे ( इच्छियपयरंमि ) के० इच्छित प्रतरने विवे ( उक्कोसा ) के० उत्कृष्ट स्थिति आवे..
ते वातने अहिं उदाहरण सहित समजावे छे केः-हेला सौधर्म देवलोकना तेरमे प्रतरे उत्कृष्ट आयुष्यनी स्थिति बे सागरोपमनी छे अने सनत्कुमार देवलोकनुं उत्कृष्ट आयुष्य सात सागरोपमर्नु छ, माटे सात सागरोपममांथी बे सागरोपमनी स्थिति वाद करीर त्यारे पांच सागरोपम सनकुमारना बाकी रहे. पछी ते पांच सागरोपमने सनत्कुमारना बार प्रतरे करीने व्हेंचीए. ते एवी रीते के-एक सागरोपमना बार बार भाग करवा, जेथी पांचे सागरोपमना बारीया साठ भाग थाय अने ते साठे भागने बारे प्रतरे वेहेंचीए त्यारे एक एक प्रतरे सागरोपमना बारीया पांच पांच