Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 9
________________ [] १२- श्री आदीश्वरमगधान् १०८ मुनियोंके साथ 'अष्टापद' पर मोक्ष पधारे सो अच्छेरा कहते हैं, तोभी उनको मोक्ष कल्याणक माननेमें कोई भी बाधा नहीं आसकती. तैसेही- श्री वीरप्रभुकेभी देवानंदा माता के गर्भ में आने से त्रिशलामाता के गर्भ में जाना पडा. सो अच्छेरारूप कहते हैं, तोभी उनको च्यवनकल्याणक माननेमें कोई भी बाधा नहीं आसकती. इसलिये अच्छेरा कहकर कल्याणकपनेका निषेध करना यहभी बे समझही है. १३- और श्री मल्लिनाथस्वामि स्त्रीपने में तीर्थकर उत्पन्न हुए हैं, तोभी चावीश तीर्थकर महाराजों की अपेक्षासे सामान्यता से पुरुषपनेमें कहने में आते हैं. तैसेही श्रीवीरप्रभुकेभी छ कल्याणक आचारांग - स्थानांगादि आगमों में विशेषता से खुलासापूर्वक कहे हैं, तोभी 'पंचाशक' में सर्व तीर्थकर महाराजों की अपेक्षासे सामान्यतासे पांच क. ल्याणक कहे हैं, उसकाभावार्थ समझे बिनाही सर्वजिन संबंधी पांचकल्याणकोका सामान्य पाठको आगे करके आचारांग - स्थानांगादि आगमों में कहे हुए विशेषतावाले छ कल्याणक का निषेधकरना यह भी वे समझका व्यर्थही आग्रह है । १४ - इसतरहसे आगमपंचांगीके अनेक शास्त्रानुसार तीर्थकर, ग णधर, पूर्वधरादि प्राचीन पूर्वाचार्योंके कथनमुजब गर्भापहारको दूसरा च्यवनरूप कल्याणकपनाप्रत्यक्षसिद्ध होनेसे. श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराजने चितोड में छठे कल्याणककी नवीनप्ररूपणाकी, पहिले न ह्रीं थी, ऐसा कहेनाभी वे समझसे व्यर्थ ही है । १५ - और गर्भापहाररूप दूसरे च्यवनकल्याणक के अतीव उत्तम कार्यको 'सुबोधिका ' टीकामे अतीव निंदनीक कहकरके निंदा की है, सोभी भगवान्की आशासनाकारक होने से सम्यक्त्वको व संयमको हानी पहुंचाने वाली है, उसका तत्त्वदृष्टिसे विचार किये बिनाही विद्वान् कहलानेवाले सर्व मुनिमहाराज वर्षौंवर्ष पर्युषणापर्वके मांगलिक रूप व्याख्यान समय ऐसी अनुचित बातको वांचते हैं, यह बडीही शर्म की बात है, भवभीरू आत्मार्थियोंको ऐसा करना कदापि योग्य नहीं हैं। इन सर्व बातोंका विशेष निर्णय प्रथम भागकी भूमिका में और इस ग्रंथके उत्तरार्द्धमें अच्छी तरहसे लिखने में आया है, उनके वांचने से सर्व बातोंका निर्णय हो जावेगा. १६-- सामायिक में प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण किये बाद पीछेले इरियावही करने संबंधी भी आवश्यक चूर्णि बृहद्वृत्ति- लघुवृत्तिनवपदप्रकरण विवरणरूपवृत्ति - दूसरीवृत्ति-भावकधर्मप्रकरणवृत्ति २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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