Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay Author(s): Manisagar Publisher: Jain Sangh View full book textPage 7
________________ [७] भगवान्केच्यवनकल्याणकसमय उनकी माता१४महास्वप्न आकाशसे उत्तरतेहुएदेखतीहैं, उसीसमय तीनजगतमें उद्धयोत होता है व सर्व संसारीप्राणीमात्रको सुखकीप्राप्तीहोती है, और इन्द्रमहाराजका आसन चलायमान होनेसे अवधिज्ञानसे भगवानको देखकर विधिपूर्वक पूर्णभक्तिसहित नमुत्थुणंरूप नमस्कारकरके तत्काल माताके पासआकर१४ महास्वप्न देखनेसे स्वप्नोंके अनुसार तीनजगतकेपूज्यनी क तीर्थकर पुत्र होनेका कहकर इन्द्रमहाराज अपने स्थानपरजाते हैं. और प्रभातसमय फजरमे राजा स्वप्न पाठकोसे १४ महास्वप्नोंकाफल पूछताहै,तब तीर्थकर पुत्र होनेका सुनकर हर्ष सहित महोत्सव करता है, और इन्द्र महाराज देवताओं द्वारा उस रोजसे भगवान के माता-पिताके घरमे धन धान्यादिकसे राज्य ऋद्धिकीवृद्धि करवाते हैं इत्यादि तीर्थकरभगवान्के च्यवनकल्याणकके कार्यहोतेहैं, यही सर्व कार्य आषाढशुदी के रोज भगवान् देवानंदामाताके गर्भमें आये तब नहीं हुए,किंतु आसोज वदी १३के रोज त्रिशलामाताके गर्भ में आये; तब उससमय हुएहैं, क्योंकि देखो-आषाढ सुदी ६ को तो प्राचीन कर्मके उदयसे भगवान् ब्राह्मणीदेवानंदामाताके गर्भमें आये. और ८२दिनतकवहां ठहरनापडा,उनको कल्पसूत्रादिक शास्त्रोमें अच्छेरा कहाहै, इसलिये ८२ दिन तकतो इन्द्रादिक किसीकोभी तीर्थकरभगवान्के उत्पन्न होनेकी मालूम न पडी,मगर संपूर्ण८२ दिन गयेबाद इन्द्रमहाराजको अवधिशानसे मालूमपडी उसीसमय पूर्णहर्षसहित नमुत्थुणंकिया और हरिणेगमेषिदेवको आज्ञाकरके क्षत्रियाणीत्रिशला माताके गर्भमें पधराये, तब त्रिशलामाताने (देवानंदाके १४महास्वप्न हरणकरनेका१स्वप्न नहीं देखा-किंतु)तीर्थकर भगवान्के च्यवन कल्याणककी सूचनाकरने वाले १४ महास्वप्न आकाशसे उत्तरत हुए और अपने मुखमें प्रवेश करते हुए देखे हैं. इसलिये खास कल्प: सूत्रके मूल पाठमेभी "एए चउद्दस सुमिणा, सव्वा पासेई तित्थयर भाया। जं रयणि वक्कमई, कुच्छिसि महायसो अरिहा"अर्थात्-जिस समय तीर्थकर भगवान माताके गर्भ में आकर उत्पन्न होतेहैं,उस समय यह १४ महास्वप्न सर्व तीर्थकरमहाराजोंकी मातायें देखती हैं, बैसेही-त्रिशलामातानेभी १४ महास्वप्न देखे हैं, इसलिये त्रिशलामा. ताके गर्भमें आनेकोही शास्त्रकार महाराजोंने च्यवन कल्याणक मा. न्य कियाहै, इसीकारणसे समवायांगसूत्रवृत्तिमें देवानंदामाताके गभैसे त्रिशला माताके गर्भमें आनेको अलग भव गिनकर तीर्थकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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