Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay Author(s): Manisagar Publisher: Jain Sangh View full book textPage 6
________________ मान्य करो और जब पांच महीनोका वर्षाकाल मान्य हुआ तो फिर अधिकमहीना निषेध करनेकी व पर्युषणाके पीछे ७० दिन हमेश रखने वगैरहकी सर्व बातें आपही आप निष्फल हो जाती हैं इसतरहसे अधिकमहीनेकेनिषेधसंबंधी धर्मसागरजीने 'कल्प कि. रणावली'में, जयविजयजीने 'कल्प दीपिका' में, विनयविजयजीने 'सु. बोधिका में,कांतिविजयजी-अमरविजयजीने जैन सिद्धांत समाचारी' में,शांतिविजयजीने मानवधर्मसंहिता में,वल्लभविजयजीने जैनपत्रमें, विद्याविजयजीने पर्युषणा विचार'में,कुलमंडनसूरिजीने 'विचारामृत संग्रह' में, हर्षभूषणजीने 'पर्युषणास्थिति' में, और वर्तमानिक चर्चाके हेडबिले, किताबे वगैरहमें जो जो शंकायें कीहैं, उन सर्व शंकाओंका खुलासा पूर्वक समाधान इस ग्रंथकी भूमिकामे व पीठिका और इस ग्रंथमें अच्छी तरहसे लिखनेमे आयाहै, इसलिये जिनाशानुसार धर्मकार्य करनेकी इच्छावाले,सत्यतत्त्वाभिलाषी,आत्माहितैषी पाठक गण इसथको पूर्णतया वांचकर सत्यसार ग्रहण करें। ९-तीर्थकर भगवान्के च्यवन-जन्म-दीक्षादिकोंको कल्याणक मा ननका आगमानुसार अनादि सिद्ध है,इसलिये श्री महावीरस्वामिभी देवलोकसे देवानंदामाताके गर्भमे आषाढ शुदी ६ को आये; उन. को प्रथम च्यवन कल्याणक, और आलोजवदी १३ को देवानंदामा. ताकेगर्भसे त्रिशलामाताके गर्भमें आये; सो गर्भापहाररूप (गर्भसंक्रमणरूप)दूसराच्यवन कल्याणक माननेका स्थानांग-आचारांग-दशाश्रुतस्कंधादिक आगम पंचांगी प्रकरण चरित्रादि अनेक शास्त्रानुसा. र और वडगच्छ, चंद्रगच्छ, उपकेशगच्छ (कमलागच्छ ) खरतर. गच्छ,तपगच्छ, अंचलगच्छ, पायचंदगच्छादि अनेक गच्छोंके पूर्वाचार्योंके ग्रंथानुसार अच्छी तरहसे सिद्ध करके बतलायाहै. च्यवनजन्म-दीक्षादिकोको चाहे वस्तु कहो, चाहे स्थानकहो, चाहे कल्याणक कहो. इन तीनोंबातोंमें प्रसंगोपात संबंधानुसार पर्याय वाचक एकार्थवाले शब्द अलग २ हैं, मगर सबका भावार्थ एकही है, उसबातकाभेद समझे बिनाही च्यवन-जन्म-दीक्षादिकाको वस्तु-स्थान कहकर कल्याणक पनेका निषेध करके आगमार्थरूप पंचांगीको उ. स्थापनकरनेके दोषी बनना किसीकोभी योग्य नहीं है। १०- श्रीवीरप्रभुके आषाढ शुदी ६ को प्रथम च्यवनकल्याणक मान्यकरके आसोजवदी १३ को दूसरेच्यवनको कल्याणकपनेका नि. षेध करनेवालोंको न्यायबुद्धिसे विचार करना चाहिये, कि-तीर्थकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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