Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 4
________________ [ ४ ] इसलिये भवभिरुयों को गुरु गच्छ व लोक समुदायादिकका पक्षरखनेके बदले जमालिके शिष्योंकी तरह जिनाशाका पक्ष रखनाही योग्य है, अर्थात् - जैसे- अपने गुरु जमालिके उत्सूत्रप्ररूपणा के पक्ष को छोड़कर बहुत भव्यजीव भगवान्की आज्ञामुजब मामनेलगेथे, तैसेही अभी भी आत्मार्थियों को करना योग्य है. यही सम्यक्त्वका मुख्य लक्षण है. ६- मैंरे बनाये इस एक ग्रंथके सामने अनेकग्रंथ लिखे जाने की मैरेको कोई परवाह नहीं है, देखो-जैसे एकवीतराग सर्वज्ञभगवान् के परोपकारी जैन आगमोंके विरुद्ध हजारों मतवादी अनेक तरहसे अ पना २ कथन करते हैं. मगर तत्त्व दृष्टिले आत्महितकारी सत्य बात क्या है, यही देखा जाता है. तैसेही- मैंरे बनाये इस ग्रंथपरभी १-२ नहीं; परंतु १०-२० लेखकभी अपना २ विचार सुखसे लिखें. मगर जिनाशानुसार सत्य बात क्या है. यही देखना है. झूठे मतवादियों का यही स्वभाव है, कि - हजारों सत्य बातें छोड़ देते हैं, और अतिश - योक्ति या क्रोध में आकर क्लेश बढानेलगजाते हैं, मगर अपनी बात को छोडते नहीं. वैसे इस ग्रंथपर न होना चाहिये यही प्रार्थना है. ७- इस ग्रंथ में पर्युषणा संबंधी अधिक महीने के ३० दिनोंकी गिनती सहित आषाढचौमास से ५० वे दिन दूसरे श्रावण में या प्रथम भाद्रपद में पर्युषण पर्व का आराधन करनेका तथा श्रावण भाद्रपद आ सोज अधिक महीने होंवे तब पर्युषणा के पीछे कार्तिकतक१०० दिन ठहरनेका खरतर गच्छ, तपगच्छ, अंचलगच्छ, पायचंदगच्छादि सर्व गच्छोंके पूर्वाचार्योंके वचनानुसार और निशीथचूर्णि, वृहत्कल्पचूर्णि, पर्युषणाकल्पचूर्णि, स्थानांग सूत्रवृत्ति वगैरह अनेक शास्त्रपाठानुसार अच्छी तरह से साबित करके बतलाया है । जैसे अधिक म हीना होवे तोभी ५० दिने पर्युषणापर्व करनेकी सर्व शास्त्रोंकी आशा है, वैसेही - अधिक महीना होवे तोभी पीछे हमेश ७० दिन रहने की आ ज्ञा किसी भी शास्त्रमें नहीं है, समवायांगसूत्रका पाठ तो सामान्य रीति से अधिक महीना न होवे तब ४ महीनोंके वर्षाकाल संबंधी है, उसका भावार्थ समझे बिना अधिक महीना होवे तब अभी पांच महीनोंके वर्षाकालमै भी उसी सामान्य पाठको आगे करना और १०० दिन पीछे रहने संबंधी अनेक शास्त्रोंके विशेष पाठोंकी बातको छोड देना यह सर्वथा अनुचित है । ८- लौकिक टिप्पणा में दो श्रावणादिमहीने होंवे, तब पांच महीनोंका वर्षाकाल मान्य करना यह बात अनुभवसिद्ध प्रत्यक्ष प्रमाणानुसार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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