________________
भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ (आ) इन तीनों प्रान्तोंके सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्रोंका विभाजन उपर्युक्त छह जनपदोंमें इस प्रकार किया है
१. वज्जि-विदेह जनपद-वैशाली-कुण्डग्राम ( कुण्डलपुर ), मिथिलापुरी। २. अंग जनपद -चम्पापुरी, मन्दारगिरि । ३. मगध जनपद-राजगृही, पावापुरी, गुणावा, पाटलिपुत्र । ४. भंगि जनपद-सम्मेदशिखर, भद्रिकापुरी-कोल्हुआ पहाड़।
५. कलिंग जनपद--कटक, भुवनेश्वर, खण्डगिरि-उदयगिरि, पुरी। बंग जनपदमें जैनधर्मके अनेक सुप्रसिद्ध केन्द्र थे। किन्तु तीर्थक्षेत्र एक भी नहीं था। आज भी बंग देश (बंगला देश और भारतके बंगाल प्रान्त ) में जैनोंका कोई तीर्थ विद्यमान नहीं है। प्राचीन कालमें बंग देशमें कर्ण सुवर्ण, कोटिवर्ष, ताम्रलिप्ति, कोपकटक, पहाड़पुर आदि सुप्रसिद्ध जैन केन्द्र थे, किन्तु वे भी तीर्थ नहीं थे और आज तो उनकी पहचान भी दुर्लभ है । इसलिए बंग देशमें किसी तीर्थका नाम नहीं दिया है।
प्रत्येक जनपदके नक्शे भी दिये गये हैं, जिनमें जैन तीर्थोको लाल चिह्नसे चिह्नित किया गया है। इन जनपदीय नक्शोंमें प्राचीन जनपदोंकी सीमाओंको प्रदर्शित करनेवाले लघु नक्शे भी दिये गये हैं जो जनपदीय नक्शोंमें ही देखे जा सकते हैं । जनपदीय नक्शोंके अतिरिक्त एक बड़ा नक्शा भी दिया गया है, जिसमें बिहार-बंगाल और उड़ीसाके सभी जैनतीर्थ प्रदर्शित किये गये हैं।
इन नक्शोंमें वे जिले और प्रमुख स्थान भी दिखाये गये हैं, जहां सराक, सद्गोप, रंगिया, अलकबाबा आदि जातिके लोग निवास करते हैं। ये सभी जातियाँ प्राचीन कालमें जैन धर्मानुयायी थीं और परिस्थितिवश वे जैनधर्मका परित्याग करनेको बाध्य हो गयीं, किन्तु जैनत्वके संस्कार उनमें अब भी पाये जाते हैं।
इस ग्रन्थ में तीन परिशिष्ट दिये गये हैं-(१) कोटिशिला, (२) बिहार-बंगाल-उड़ीसामें सराक जाति, (३) बिहार-बंगाल-उड़ीसाके जैनतीर्थ; संक्षिप्त परिचय और यात्रा-मार्ग ।
आभार प्रदर्शन
पहलेकी तरह इस ग्रन्थमालाके प्रस्तुत ग्रन्थ भाग-२ के निर्माणमें भी मान्य श्री साहू शान्तिप्रसादजीकी प्रेरणा और स्नेह मेरे लिए प्रेरक तत्त्व रहे हैं अतएव उनका मैं चिरऋणी हूँ। भारतीय ज्ञानपीठकी अध्यक्षा श्रीमती रमारानीजी और मन्त्री श्री लक्ष्मीचन्द्रजीका भी आभारी हूँ, जिन्होंने ग्रन्थ-निर्माणकी सभी आवश्यक सुविधाएं जुटायीं । भारतीय ज्ञानपीठने ग्रन्थकी सामग्री प्राप्त करनेकी दिशामें ही प्रयत्न नहीं किया, नक्शे बनवाने, उन्हें स्वीकृत करवाने और तीर्थोपर जाकर फोटो लेनेवाले कुशल फोटोग्राफरोंको जुटानेका तथा फोटो-कार्य सम्पूर्ण करवा देनेका दुष्कर दायित्व भी वहन किया है। मैं अपने मित्र डॉ. गुलाबचन्द्रजीके प्रति भी अपना हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने पाण्डुलिपिका निरीक्षण और संशोधन किया। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईकी कार्यकारिणी तो धन्यवादकी पात्र है ही क्योंकि इस योजनाकी मूल कल्पना और इसकी पूर्तिका समस्त श्रेय और दायित्व उसीका रहा है।
इस ग्रन्थके प्रथम भागका प्रकाशन होनेपर पाठकोंसे उसके लिए जो सराहना और विश्वास प्राप्त हुआ, उससे कमेटीको और मुझे नव स्फूति तथा प्रेरण प्राप्त हुई है । आशा है, पाठकोंके उस विश्वाससे प्रस्तुत भाग भी वंचित नहीं रहेगा।
२१ मार्च, १९७५
-बलभद्र जैन