Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायपकरणम् ] तृतीयो भागः।
[७] राना कणा कणामूलं कुष्ठ शुण्ठी किरातकः। । पेयं पाश्वासशिरोरुकमुस्ता बलामृता बालद्राक्षायासः शताहिका॥ क्षयकासादिशान्तये सलिलम् ॥ एषां काथो निहन्त्येव प्रमभनकृतं ज्वरम् ।। ___ दशमूल, खरैटी, रास्ना, पोखरमूल, देवदारु सोपद्रवश्च योगोऽयं सर्वयोगवरः स्मृतः ।
| और सेठिका काथ पीनेसे पसली, कंधे, और शि____दशमूल (बेल, कुम्हार, पाढल, सोना पाठा,
| रकी पीड़ा तथा क्षय और खांसीका नाश होता है। अरणी, गोखरू, कटहली, कटहला, पृश्निपर्णी,
(२८४४) दशमूलादिपञ्चदशाङ्गकाथ: शालपर्णी ) रासना, पीपल, पीपलामूल, कूठ, सांठ
(वृ. मा. । ज्व.) चिरायता, नागरमोथा, खरैटी, गिलोय, किसमिस
| दशमूलीशठीशीव्योषकायं पिवेधरः। जवासा और सतावर । इनका काथ बनाकर पीनेसे
सभिपातज्वरं इन्ति इत्याह कपिलो मुनिः॥ उपद्रव सहित वातज्वर नष्ट होता है। ये प्रयोग
कपिल मुनिका कथन है कि दशमूल, शठी सब योगामें उत्तम है।
( कचूर ), काकड़ासिंगी, सांठ, काली मिर्च और
पीपलका काथ पीनेसे सन्निपातज्वर नष्ट होता है। दशमूलादिचतुर्दशाङ्गकाथ: (. मा.। ज्व.)
| (२८४५) दशमूलादियवागूः (भा. भै. र. प्रथम भागमें “किरातादि काथ"
(वं. से. । श्वास.) सं. ६४८ देखिये।)
दशमूलीशठीरास्तापिप्पलीविश्वपौष्करैः। (२८४२) दशमूलादिजलम्
शङ्गीतामलकीभाजीगुडूचीनागरादिभिः ॥ (व. मा. । हिक्का; वृ. नि. र. । हिक्का.) यवागूर्विधिना सिद्धं कषायं वा पिवेबरः। कृषितो दशमूलस्य काथं वा देवदारुणः । | सहृद्ग्रहपातिहिकाश्वासप्रशान्तये ।। , मदिरां वा पिवेधुक्त्या हिकायासपपीडितः॥ । दशमूल, कचूर, रास्ना, पीपल, सोंठ, पोखरमूल,
हिचकी या श्वासके रोगीको यदि तृषा अ- | काकडासिंगी, भुई आमला, भारंगी, गिलोय और धिक हो तो यथोचित मात्रानसार दशमूलका काथ, नागरादिगण की ओषधियोंका काथ बनाकर पीने या देवदारुका काथ, या मदिरा पिलानी चाहिए। या उससे यवागू२ सिद्ध करके खानेसे हृद्ग्रह, पस(२८४३) दशमूलादिपञ्चदशाङ्ग लीकी पीड़ा, हिचकी और श्वास नष्ट होता है। (च. द.। अ. १०; ग.नि.। रा. य.; यो. र. (२८४६) दशमूलीयोगः, वं. से. । रा. य.; वृ. मा. । रा. य.)
(यो.र.। उदर.) दशमूलबलाराना
दशमूलकषायेण क्षीरवृत्तिः शिलाजतुः । पुष्कर सरदारुनागरैः कथितम् । सयो वातोदरी क्षीरमौष्टमाजं च केवलम् ॥ १ नागरादि गण सोंठ, देवदार, धनिया, कटेली, कटेला।
२ सब ओषधियां समान भाग मिलाकर १ पाव (२० तोले) लें और १६० तोले पानीमें पकावें । जब ४० तोले पानी रहे तो उसमें ६-७ तोके चावल डालकर पकायें।
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