Book Title: Bhaktamar Kalyanmandir Mahayantra Poojan Vidhi
Author(s): Veershekharsuri
Publisher: Adinath Marudeva Veeramata Amrut Jain Pedhi

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Page 13
________________ શ્રી મકતાર મહાયત્ર જન વિધિઃ ************ हा स्वा ॐ पक्षि, मा भत्राक्षरी प्रभुवार अनुमै थत्तर आडावरोड भे-१-ढीया २-नासि उ-दृहय ४-भुम ५ बाट (मस्त) शुभ पांच स्थणे स्थायी आत्मरक्षा भाषी (भाजी थाली ) १५:०४२ स्तोम थी आत्मरक्षा करवी. अर्थ श्री बिसम्गडर' पुन भत्त पानुः -२१. श्री वज्रपञ्जर स्तोत्रम् || (अनुष्टुप्) ॐ परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकर वज्रपञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥ १॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षाऽतिशायिनि । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ ॐ नमो लोए सब्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पञ्च नमुकारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वत्रो वज्रमयो बहिः । मङ्गलाणं च सव्वेंर्सि, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवs मङ्गलं । वत्रोपरि वज्रमयं पिधानं देह रक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठि पदोद्भूता कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यचैवं कुरुते रक्षां, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि- राधिश्वापि कदाचन ॥८॥ ना ४४ यत्रो तथा " तुभ्यं" २१ ह आह श्री महादभी यंत्र - १ आह श्री आहे परस्वाभि धरण पाहुअ-२, श्रीमानतु गसूरीश्वर गु३ पाहु-उ (आमी थाजी) श्री सम्ताभरना ४४ उन्निद्र .... पादौ पदानि ३२ ||१०||

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