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श्रावक ने व्यापार के निमित्त विदेश यात्रा की थी। वह वहां से एक कन्या भी लाया था। मेरे कथन का तात्पर्य यह नहीं कि आप किसी प्रकार की मर्यादा को भंग करें। मैं सिर्फ यह बतलाना चाहता हूं कि भगवान् महावीर के भक्त दीन, कायर, डरपोक नहीं होते। उनमे वीरता, पराक्रम, आत्मगौरव आदि सद्गुण होते हैं। जिनमें यह सब गुण विद्यमान हैं वही महावीर का सच्चा अनुयायी है। महावीर का अनुयायी जगत के लिए अनुकरणीय होता है-उसे देखकर दूसरे लोग अपने जीवन को सुधारते हैं ।
मगर आज उल्टी गंगा बह रही है। बाहर के लोग आकर आपको विलासिता के वस्त्र त्यागने का उपदेश देते हैं। यह देख कर मुझे संकोच होता है - कि जहां भगवान् महावीर का सच्चा उपदेश है वहां विलासिता कैसी? भगवान् के उपदेशों को श्रद्धापूर्वक सुनने वाले, मान्य करने वाले और जीवन में उन्हें स्थान देने की चेष्टा करने वाले लोगों को विलास का त्याग करने के लिए दूसरों के उपदेश की क्या आवश्यकता होती है ! भगवान् का उपदेश सदा सुनने वाले सादा जीवन व्यतीत क्यों नहीं करते? उनमें सुदर्शन सरीखी वीरता क्यों नहीं आती है? आज बहुसंख्यक विचारक भगवान महावीर के आदर्शों की ओर झुक रहे हैं। उन्हें प्रतीत हो रहा है कि जगत् का कल्याण उनके बिना सम्भव नहीं है। पर भगवान् के आदर्शों पर अटल श्रद्धा रखने वाले आप लोग लापरवाही करते हैं तो आश्चर्य होता है। आप शायद यह विचार कर रह जाते होंगे कि यह तो हमारे घर का धर्म है । 'घर की मुर्गी दाल बराबर' यह कहावत प्रसिद्ध है ।
धार (मध्यभारत) में एक साधुमार्गी सेठ थे। वह सेठ राजमान्य थे और राजा प्रजा के बीच के आदमी थे, अच्छे वैभवशाली थे। उन सेठ के बापूजी नामक एक मित्र थे। बापूजी मरहठा थे और राज - परिवार के आदमी थे। सेठजी के संसर्ग से बापूजी को जैन धर्म पर श्रद्धा हो गई। बापूजी को जैन धर्म बहुत प्रिय लगा और धीरे-धीरे वे सेठ से भी आगे बढ़ गये । राजा के यहां बापूजी का नाम 'बापूजी ढूंढ़िया' पड़ गया। सब उन्हें ढूंढिया कहने लगे । बापूजी कहा करते - अवश्य, मैंने परमात्मा को ढूंढ लिया है।
एक दिन सेठजी ने बापूजी से कहा- आपकी धार्मिकता तो मेरी अपेक्षा भी अधिक बढ़ गई है ! मेरे यहां न जाने कितनी पीढ़ियों से इस धर्म की आराधना होती आ रही है, फिर भी मैं पीछे रह गया और आप आगे बढ़ गये । बापूजी ने उत्तर दिया- आप की पीढ़ी-जात धनी हैं, अर्थात् आपके यहां धर्म रूपी धन कई पीढ़ियों से है और मैं ठहरा जन्म से गरीब ! गरीब
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श्री जवाहर किरणावली