________________
व्याख्यान-पुदगल सम्बन्धी अठारह सूत्रों की व्याख्या के अनन्तर चार सूत्रों का अधिकार और निरूपण किया जाता है।
___ गौतम स्वामी भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं-भगवन्! नारकी जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मण शरीर के रूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें अतीत काल में ग्रहण करते हैं या वर्तमान काल-समय में ग्रहण करते हैं? तात्पर्य यह है कि ग्रहण किये हुए पुद्गलों का, पुद्गल नाम मिट कर तैजस और कार्मण शरीर हो जाता है, सो किस काल समय में ?
यहां तीनों कालों के साथ 'समय' विशेषण लगाया गया है अर्थात् काल और समय, इन दो पदों का प्रयोग किया गया है। इसका कारण यह है कि 'काल' शब्द के अनेक अर्थ हैं और 'समय' के भी अनेक अर्थ हैं। अकेले 'काल' शब्द का प्रयोग करने से काला (कृष्ण) अर्थ भी लिया जा सकता था। ऐसा अर्थ यहां प्रस्तुत नहीं है, यह प्रकट करने के लिए काल के साथ 'समय' विशेषण लगा दिया गया है।
आशंका की जा सकती है कि अगर ऐसा था तो 'अतीत समय ऐसा कह देने से काम चल सकता था, फिर 'काल' पद व्यर्थ क्यों कहा जाये? इसका उत्तर यह है कि समय-समाचार रूप या प्रस्ताव रूप भी होता है। कोई इसी समय को न समझ ले, इसलिए भ्रम निवारण के लिए 'काल' शब्द का भी प्रयोग किया गया है। इस प्रकार काल का विशेषण समय और समय का विशेषण काल कह देने से किसी प्रकार का भ्रम नहीं रहता और सरलता से इष्ट अर्थ समझा जा सकता है।
एक बात और है। यहां 'अतीतकाल' के साथ 'समय' शब्द का प्रयोग किया गया है। यद्यपि अतीत काल कह देने मात्र से भी काम चल जाता मगर ऐसा करने से तो न जाने कितनी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी का अर्थ समझा जाता! किन्तु यहां समीपवर्ती अतीत काल का अर्थ ही ग्रहण करना है। काल का छोटे से छोटा अंश लेना है और वह भी भूतकाल का ही। अतएव भूतकाल को सूचित करने के लिए 'अतीत' शब्द ग्रहण किया है और उसका छोटे से छोटा अंश समझाने के लिए 'समय' शब्द का प्रयोग किया है।
गौतम स्वामी का प्रश्न यह है कि नारकी जीव जिन पुद्गलों को तैजस और कार्मण शरीर के रूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें अतीत काल में ग्रहण करते हैं, वर्तमान में ग्रहण करते हैं या भविष्य काल में ग्रहण करते हैं ?
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २६६