Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 305
________________ उक्त वर्णन से इस बात का भी भलीभांति अनुमान किया जा सकता है कि जैन धर्म क्या है? उसकी बारीकी और व्यापकता कहा तक जा पहुंची है! एक छोटे से राज्य का राजा होता है, दूसरा बड़े राज्य का होता है। वासुदेव का भी राज्य और चक्रवर्ती का भी। चक्रवर्ती का राज्य सबसे बड़ा गिना जाता है, क्योंकि उसके राज्य में सभी एक छत्र आ जाते हैं। सबका एक छत्र के नीचे आ जाना, यही चक्रवर्ती का चक्रवर्तीपन है। हम लोग तीर्थकरों की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं-'प्रभो। तू त्रिलोकीनाथ है। अगर भगवान् को त्रिलोकनाथ कहते हैं तो उनके राज्य में तीनों लोक के जीवों का समावेश हो जाना चाहिए। फिर भले ही कोई छोटा हो या बड़ा हो। चक्रवर्ती मनुष्यों पर ही शासन करता है, लेकिन त्रिलोकनाथ का छत्र तो चौबीस दण्डकों के जीवों के सिर पर है। उनका छत्र नारकी जीवों पर भी है। जैसे बड़ा राजा, अपने राज्य को प्रान्तों में विभक्त करता है, उसी प्रकार भगवान् ने अपने राज्य चौबीस दण्डक रूपी प्रान्तों में विभक्त किया है। इन दण्डकों में से पहला दण्डक नारकी का है। भगवान् ने नारकियों को सबसे पहले याद किया है। मनुष्य के शरीर में भी पहले पांव गिना जाता है, सिर नहीं। लोग पैर पूजना कहते हैं, सिर पूजना नहीं कहते। पैर का महत्व बढ़ने से सिर का महत्व आप ही बढ़ जाता है। भगवान् का राज्य तीनों लोकों में फैला है। उन्होंने नरक को भी एक प्रान्त बनाया है। यहां यह आशंका हो सकती है कि असुरकुमार आदि के जो समीप ही हैं, दस दंडक माने गये हैं और नारकी जीवों का एक ही। इसका क्या कारण है? इस आशंका का समाधान यह है कि नारकी जीवों में इतनी अधिक उथल-पुथल नहीं होती; क्योंकि वे दुःख में पड़े हैं। भवनवासी उथल-पुथल करते रहते हैं। इत्यादि कारणों से उनके दस दंडक किये गये हैं। फिर प्रश्न होता है कि असुरकुमार के सिवा नौ भवनवासी समान ही हैं, फिर इनके अलग अलग दंडक क्यों बताये गये हैं। एक ही दंडक क्यों न बता दिया? जिन भगवान् ने दंडक रूपी प्रान्त बनाये हैं, इन्हें उस विषय में अधिक ज्ञान था। हमें उनकी व्यवस्था पर ही निर्भर रहना चाहिए। इस विषय में सूत्रों में कोई स्पष्टीकरण नहीं हैं किन्तु आचार्यो की धारणा ऐसी है कि नारकी में सातों नरक के नेरयिक परस्पर सलग्न हैं-इनके २६४ श्री जवाहर किरणावली

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