Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 307
________________ हैं,जहां व्याघात हो वहां तीन,चार या पांच दिशा से आहार लेते हैं। तात्पर्य यह है कि लोक के अन्त में,कोने के ऊपर रहा हुआ पृथ्वीकाय का जीव तीन,चार या पांच दिशाओं से आहार ग्रहण करता है। तब तीन दिशाएं अलोक में दब जाती हैं- तीन तरफ अलोक आ जाता है,तब तीन दिशा से आहार लेते हैं। जब दो दिशाएं अलोक में दब जाती हैं तब चार दिशा का और जब एक दिशा अलोक में दब जाती है तब पांच दिशाओं से आहार लेते हैं। मतलब यह है कि जो दिशा अलोक में दब जाती है, उसका आहार नहीं लेते। पृथ्वीकाय जीवों के एकमात्र स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है। उन्हें रसेन्द्रिय नहीं है। जिसके रसेन्द्रिय नही है वह उसके द्धारा आहार ग्रहण करके स्वाद लेता है, मगर यह बात इनमें नहीं पाई जाती। इसलिए यह जीव स्पर्शनेन्द्रिय से ही आहार ग्रहण करके उसका आस्वादन करते हैं। इनका यह स्पर्श भी एक प्रकार का आस्वादन है। पांच स्थावरों की स्थिति में अप्काय की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। अग्निकाय के जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन दिन की है वायुकाल की उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की, वनस्पति काय की दस हजार वर्ष की और पृथ्वीकाय की बाईस हजार वर्ष की स्थिति है। इस प्रकार इन सबकी स्थिति है। दो-इन्द्रिय की स्थिति उत्कृष्ट बारह वर्ष की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। दो इन्द्रिय वाले जीवों को अभोगआहार की इच्छा असंख्यात समय बाद होती है। असंख्यात समय कितना लेना चाहिए, यह बताने के लिए अन्तर्मुहूर्त का असंख्यात समय ग्रहण किया गया है। द्वीन्द्रिय जीवों के आहार का कोई निश्चित समय नहीं है, अतएव वह विमात्र से कहा गया है। इन जीवों का आभोग आहार रोम द्वारा भी होता है जब वर्षा होती है तब रोमों द्वारा शीत आप ही आ जाता है। वह रोमाहार कहलाता है। द्वीन्द्रिय जीवों के आभोग-आहार के विषय में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि वे रोम द्वारा गृहीत आहार को पूर्ण रूप से खा जाते है और प्रक्षेपाहार का बहुत सा भाग नष्ट हो जाता है और असंख्यातवां भाग शरीर रूप में परिणत हो जाता है। इस कथन के आधार पर यह प्रश्न किया गया २६ श्री जवाहर किरणावली सातवाली

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