Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 283
________________ है कि तैजस शरीर आठ स्पर्शी है और कार्मण चतुःस्पर्शी है। कार्मण शरीर तैजस के बिना नहीं रह सकता, जैसे बिजली और तांबे का तार। शक्ति बिजली और तार मिलकर उपयोगी होते हैं। इसी प्रकार बिना तैजस शरीर के कार्मण शरीर ठहर नहीं सकता। इसी कारण यहां दोनों का ही ग्रहण किया गया है। आत्मा के साथ पहले का जो तैजस-कार्मण शरीर है, वह सूक्ष्म है। वर्तमान में जो पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं, उनका पुद्गल नाम मिटकर तैजस कार्मण नाम हो जाता है। इस सूत्र से यह सिद्ध होता है कि जीव कहीं भी जाता है, तैजस और कार्मण उसके साथ सदैव बने रहते हैं। तीसरा प्रश्न है-भगवन्! नारकी जिन कर्मो को वेदते हैं-जिन कर्मों का फल भोगते हैं, वे कर्म भूतकाल के हैं, या वर्तमान काल के या भविष्य काल के? __ इसके उत्तर में भगवान् ने कहा-गौतम ! अतीतकाल में ग्रहण किये हुए कर्मों का वेदन होता है; वर्तमान के तथा भविष्य के कर्मों का वेदन नहीं होता। इसी प्रकार निर्जरा भी भूतकाल में ग्रहण किये हुए कर्मों की होती है, वर्तमान या भविष्यकालीन कर्मों की नहीं होती। यह चार सूत्र हुए। आगे कर्म-अधिकार से आठ सूत्र कहे जाते हैं। पहला प्रश्न है-भगवन्! नारकी जीव चलित कर्म बांधता है या अचलित कर्म बांधता है? इस प्रश्न का उत्तर है- गौतम! नारकी जीव अचलित कर्म का बंध करता है, चलित कर्म का बंध नहीं करता। यहां यह जिज्ञासा हो सकती है कि जो अचलित है उसका बांधना क्या? जो गाय बंधी है, वह तो बंधी है ही; उसकी बांधना क्या ? बांधना तो उसे पड़ता है जो छूटी हो । इसी प्रकार जो कर्म अचलित हैं-स्थिर हैं, उन्हें क्या बाधना? __ इसका समाधान करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि चलित कर्म और अचलित कर्म की व्याख्या क्या है। गाय को एक बार बांधने के लिए लाते हैं और एक बार बाहर निकालने ले जाते हैं। यद्यपि गाय दोनों अवस्थाओं में चलित है लेकिन बाहर २७२ श्री जवाहर किरणावली

Loading...

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314