Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 302
________________ वैमानिकों की स्थिति ओधिकी (सामान्य) कहनी चाहिए। उनका उच्छ्वास जघन्य मुहूर्तपृथक्त्व और उत्कृष्ट तेतीस पक्ष के पश्चात् होता है। उनका आभोगनिर्वर्तित आहार जघन्य दिवसपृथक्त्व के बाद और उत्कृष्ट तेतीस हजार वर्ष बाद होता है। चलित कर्म की निर्जरा होती है, इत्यादि शेष सब पूर्ववत् ही समझना चाहिए। व्याख्यान-ऊपर जो विविध प्रकार के जीवों का वर्णन दिया गया है, उसकी कुछ विशेष बातों पर टीकाकार ने प्रकाश डाला है। ___ असुर कुमार की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई है, सो बलि नामक असुरराज की अपेक्षा से है। चरमेन्द्र की आयु एक सागरोपम की ही है। और बलिराज का आयुष्य चरमेन्द्र के आयुष्य से कुछ अधिक है। असुरकुमार का श्वासोच्छवास जघन्य सात स्तोक में बतलाया है, किन्तु स्तोक किसे कहते हैं, यह जान लेना आवश्यक है-टीकाकार कहते हैं हट्ठस्स अणवगल्लस्स निरूवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसास नीसासे एस पाणुत्ति वुच्चई ।। सत्त पाणुणि से थोवे, सत्त थोवणि से लवे। लवाणं सत्तहत्तरिए. एस मुहूत्ते वियाहिए।। स्तोक का परिमाण बतलाने के लिए श्वासोच्छवास से आरम्भ किया है; पर प्रत्येक जीव का श्वासोच्छवास समान कालीन नहीं होता, अतएव शास्त्र में कहा है कि इस गणना में मनुष्य का श्वासोच्छवास लेना चाहिए। वह मनुष्य हृष्ट हो, बहुत बूढ़ा न हो, शोक-चिन्ता वाला न हो, रुग्ण न हो। ऐसे मनुष्य के एक श्वास और उच्छवास को प्राण कहते हैं। सात प्राण का एक स्तोक होता है सात स्तोक का लव होता है और सतत्तर लव का एक मुहूर्त होता है। काल के लौकिक माप पराधीन हैं। आज घड़ी से काल का माप होता है, लेकिन घड़ी टूट जाये तो क्या किया जाएगा। ज्ञानियों का कथन है कि प्रकृति स्वयं काल नापती है, उसे समझ लेना चाहिए। अनुयोग द्वारा सूत्र में प्रकृति का माप सरसों आदि से बतलाया है। जो माप किसी और के आश्रित नहीं है, किन्तु प्रकृति के आश्रित हैं, वह लोकोत्तर माप है। दुनिया स्वतंत्रता को त्याग कर परतंत्रता के माप में पड़ रही है, लेकिन अन्त में प्रकृति का आश्रय लेना ही पड़ता है। - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २६१

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