Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 299
________________ पत्रचेन्द्रियतिर्यंच-तथा-मनुष्य आदि का वर्णन मूलपाठ पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं ठिइ मणिऊणं उस्सासो वेमायाए। आहारो अणाभोगनिव्वत्तिओ अणुसमयं अविरहिओ, आभोगनिव्वत्तिओ जहण्णेणं अंतोमुत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स। सेसं जहा चउरिंदियाणं, जाव-चलियं कम्मं णिज्जरेंति। एवं मणुस्साण वि, णवरं-आभोगनिव्वत्तिए जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अट्ठमभत्तस्स। सोइंदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। सेसं जहा तहेव जाव-निज्जरेंति। संस्कृत छाया-पत्रचेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थिति णित्वा उच्छवासो विमात्रया। आहारोऽनाभोगनिवर्तितोऽनुसमयमविरहितः, आभोगनिर्वर्तितो जघन्येन अन्तर्मुहूर्तेन, उत्कृष्टेन षष्टभक्तेन शेषं यथा चतुरिन्द्रियाणाम्। यावत्चलितं कर्म निर्जरयन्ति। __एवं मनुष्याणामपि, नवरम् आभेगनिर्वर्तितो जघन्येन अन्तर्मुहूर्तेन, उत्कृष्टेन, अष्टमभक्तेत । श्रोत्रेन्द्रियविमात्रतया भूयो भूयः परिणमन्ति। मूलार्थ-पांच अन्द्रिय वाले तिर्यञ्चों की स्थिति कह कर उनका आहार विमात्र से विविध प्रकार से कहना चाहिए। अनाभोगनिर्वर्तित आहार प्रतिसमय निरन्तर होता है। आभोगनिर्वर्तित आहार जघन्य अन्तर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट षष्ठ भक्त (दो दिन व्यतीत हो जाने पर) होता है। शेष वक्तव्यता चतुरिन्द्रिय जीवों के समान समझना चाहिए। यावत् चलित कर्म की निर्जरा होती है। मनुष्यों के सम्बन्ध में भी ऐसा ही जानना चाहिए। विशेषता इतनी २८८ श्री जवाहर किरणावली

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