Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 252
________________ वाले पुद्गल का भी आहार करते हैं। और दो वर्ण वाले पुद्गल का भी आहार करते है। विधानगमन अर्थात विशेष की अपेक्षा से अशेष- पांचों प्रकार के पुद्गलों का आहार करते हैं। गौतम स्वामी फिर प्रश्न करते हैं- भगवन! आपने काले पुदगलों का आहार करना कहा है तो नारकी जीव एक गुण काले पुदगल का आहार करते हैं या दस गुण का पुद्गल का आहार करते हैं या संख्यात, असंख्यात अनन्त गुण काले पुदगल का आहार करते है ? भगवान ने उत्तर दिया- गौतम! निश्चय में कोई एक गुण काला होता है, कोई दो गुण काला होता है, कोई दस गुण काला, कोई असंख्यात गुण काला, कोई अनन्त गुण काला होता है, नारकी जीवों के आहार में एक गुण काले पुद्गल भी होते हैं, दस गुण काले भी और असंख्यात तथा अनन्त गुण काले भी होते हैं। यहां काले पुद्गलों के सम्बन्ध में जो कथन किया गया है, वही अन्य वर्ण वाले पुदगलों के विषय में तथा रस एवं गंध आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिए। यहां तक अट्ठारह द्वार पूर्ण हो जाते हैं। इसके अनन्तर गौतम स्वामी ने स्पर्श की अपेक्षा प्रश्न किया है। उत्तर- में भगवान ने फरमाया है - एक स्पर्श वाले, दो स्पर्श वाले और तीन स्पर्श वाले पुदगलों का नारकी जीव आहार नहीं करते। कारण यह है कि एक स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करना असम्भव है और दो तथा तीन स्पर्श वाले पुदगल अल्प प्रदेशी और सूक्ष्म परिणमन वाले होने के कारण ग्रहण के योग्य नहीं हैं। अतएव चार स्पर्श वाले पुद्गल से लगाकर आठ स्पर्श वाले पुदगलों तक का आहार करते हैं यह पुदगल बहुप्रदेशी और बादर परिमाण वाले होने से ग्रहण करने योग्य होते हैं । प्रश्न हो सकता है कि एक गुण काला और अनन्तगुण काला कहने का क्या अभिप्राय है? इसका उत्तर यह है कि 'गुण' शब्द से यहां डिगरी या अंश अर्थ समझना चाहिए। उदाहरणार्थ- किसी वस्त्र को काला रंगने के लिए एक बार काले रंग में डुबोया। एक बार डुबोने से वस्त्र में एकगुण ( अंश डिगरी) कालापन आया। इस वस्त्र को एक गुण काला कहेंगे। इसी प्रकार असंख्यात बार डुबोया तो वह असंख्यात गुण काला कहलाएगा। असंख्यात गुण काला हमें प्रतीत नहीं होता। उसे विशिष्ट ज्ञानी ही जान पाते हैं । इस प्रकार का सूक्ष्म वस्तु-तत्त्व निरूपण जैन शास्त्रों में ही पाया जाता है अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता। इस का कारण यह है कि जिसने श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २४१

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