Book Title: Bhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Author(s): Jawaharlal Aacharya
Publisher: Jawahar Vidyapith

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Page 262
________________ शास्त्र सागर के भीतर अवगाहन करके अनेक महत्वपूर्ण और बहुमूल्य अर्थ रूपी मुक्ता निकालते हैं। इसके अनन्तर पूर्वोक्त संग्रह गाथा के 'कीस' पद की व्याख्या की जाती है। ‘कीस' यह एक पद है। इसमें अनेक पदों का उपचार किया जाता है। अतएव यह अर्थ समझना चाहिए कि नारकी जीवों ने जो आहार किया है। वह किस स्वभाव में, किस प्रकार और किस रूप में परिणत होता है? कल्पना कीजिए, किसी ने दूध पिया। उस दूध का अंश कहां जाएगा? किस रूप में परिणत होगा? __ किसी अत्यन्त क्षुधा पीड़ित व्यक्ति से देखने, सुनने या सूंघने के लिए कहा जाये तो वह उत्तर देगा-मुझमें शक्ति नहीं है। मेरी इन्द्रियां बेकाम हो रही हैं। इसी प्रकार उसे चलने-फिरने के लिए कहा जाये, तब भी वह यही उत्तर देगा। इसके पश्चात् किसी ने उसे दूध पिला दिया। सद्यः शक्तिकरं पयः। दूध तत्काल शक्ति देने वाला है। अतएव दूध पीते ही उसके सारे शरीर में शक्ति आ गई। उस दूध की शक्ति के हिस्से हुए। उन हिस्सों में से नाक, कान, आंख, हाथ पैर आदि को कितना कितना भाग मिला, यह एक विचारणीय बात है। ___ जो आहार किया जाता है, उसके पुद्गल मृदु भी होते हैं, स्निग्ध भी होते हैं और कठोर भी होते हैं। लेकिन सबसे सूक्ष्म सार आंख खींच लेती है। उससे कम सार वाले क्रमशः कान, नाक, जिह्वा और शरीर खींचते हैं। भारी पुद्गलों को शरीर से कम जिह्वा खींचती है और जीभ से भी क्रमशः नाक, कान और आंख खींचती है। इस प्रकार आहार के संबंध में कथन किया गया है। इस कथन की अपेक्षा, आपके हाथ में स्थित दूध को कान या आंख कहा जा सकता है, क्योंकि दूध में और कान आंख में कार्य कारण भाव का संबंध है। यद्यपि दूध में कान या आंख दिखलाई नहीं देती, तथापि कार्य-कारण का विचार किया जाये तो उक्त कथन में कोई भ्रम प्रतीत नहीं होगा। इसीलिए गौतम स्वामी पूछते हैं कि नारकी जीवों का आहार किस रूप में परिणत होता है? अर्थात् नारकी जीवों ने जिन पुद्गलों को आहार रूप में ग्रहण किया है, वे पुद्गल फिर किस रूप में परिणत होते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते हैं- हे गौतम! जिन पुद्गलों को नारकी जीवों ने आहार रूप में ग्रहण किया है, वे आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा, इस प्रकार पांचों इन्द्रियों के रूप में परिणत होते हैं। श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २५१ 888888888000

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