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में कर्म का भी समावेश हो जाता है तथा अन्य पदार्थों का भी समावेश हो जाता है, मगर कर्म रूप विशेष पक्ष में अन्य पदार्थों का समावेश नहीं होता है इसलिए सामान्य पक्ष ग्रहण करके इन पदों की व्याख्या करनी चाहिए।
अब प्रश्न यह है कि शेष पाँच पदों की संगति किस प्रकार बिठलाई जायेगी? इस प्रश्न का समाधान यह है:
इन पाँच पदों का कर्म रूप विशेष पक्ष स्वीकार करके व्याख्यान किया गया है, मगर यह भी वास्तव में सामान्य रूप ही है। कर्म को विशेष करने से यह पद विशेष हो गये हैं लेकिन वास्तव में यह पद सामान्य हैं। 'छिज्जमाणे' आदि पद सामान्य रूप से क्रियावाचक हैं। छेदन चाहे कर्म का हो, चाहे किसी अन्य वस्तु का सभी के लिए समान रूप से वह लागू हो सकते हैं इस प्रकार भेदन कर्म का भी होता है और अन्य वस्तुओं का भी। जलना, मरना, जर्जरित होना आदि क्रियाएँ भी अकेले कर्मसे ही संबंध नहीं रखती अपितु सभी से उनका संबंध है। इससे यह स्पष्ट है कि यह पद भी सामान्य रूप ही है, विशेष रूप नहीं।
इन पदों को भिन्न अर्थ वाला क्यों कहा है? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि छेदन, भेदन आदि भिन्न-भिन्न क्रियाएँ हैं जैसे कुल्हाड़ी से वृक्ष की शाखा को छेद डालना पृथक् है और तीर से शरीर को भेद डालना पृथक् है। छेदन तो अलग अलग कर देता है और भेदन भीतर घुसने को कहते हैं इस प्रकार छेदन और भेदन में अन्तर है। इसी प्रकार अग्नि से घास फूस को जलाना छेदन भेदन से पृथक् है। मरण-प्राण त्याग करने को अथवा वस्तु के बदल जाने को कहते हैं। अतएव यह भी छेदन भेदन और ज्वलन से भिन्न ही हुआ, क्योंकि जीव बिना छेदन-भेदन किये और बिना जलाये भी मर जाता है। अगर मरण इन क्रियाओं से भिन्न न होता तो ऐसा क्यों होता? इससे यह स्पष्ट हो जाता है। कि मरने की क्रिया पूर्वोक्त क्रियाओं से न्यारी है।
बहुत पुराने को जीर्ण कहते हैं। निर्जरना का अर्थ है-जर्जरित होना। पदार्थ बिना छेदे, भेदे जलाये भी ऐसा जर्जरित हो जाता है कि दीखता तो है मगर हाथ लगाते ही बिखरने लगता है। अतएव निर्जीर्ण होना भी छेदन भेदन आदि से भिन्न समझना चाहिए। इस तरह उक्त पाँच पद भिन्नार्थक हैं। यह बात स्पष्ट हो जाती है।
अब यह पूछा जा सकता है कि विगत पक्ष का अर्थ क्या है? विगत का अर्थ है- विनाश होना। यह पाँचों पद भिन्नार्थक हैं, लेकिन विगत पक्ष का समावेश इन पाँचों में होता है। छेदन भेदन आदि से वस्तु का विनाश हो
- श्री भगवती सूत्र व्याख्यान २२३
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