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मुक्तावस्था में आत्मा.की अखण्ड और शुद्ध सत्ता रहती है और मुक्तात्मा सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी होते हैं। वह समी कुछ जानते हैं, सभी कुछ देखते हैं। जानने और देखने में जो अन्तर है, उसे समझ लेना चाहिए। उदाहरणार्थ एक पुस्तक आपके सामने है। पुस्तक का रंग तो सभी देखते हैं, मगर उस पुस्तक में क्या लिखा है, इस बात को सब नहीं जानते। इससे प्रतीत हुआ कि देखना तो सामान्य है और जानना विशेष है। भगवान् केवल-ज्ञान से जानते हैं और केवल दर्शन से देखते हैं। इस कथन से यह भी सिद्ध है कि मुक्तात्मा, मुक्ति से जड़ नहीं हो जाते; वरन् उसकी चेतना सब प्रकार की उपाधियों से रहित, निर्विकार और शुद्ध स्वरूप में विद्यमान रहती है।
मुक्तिकामीटीकाकार कहते हैं कि किसी-किसी प्रति में 'सव्वण्णूं' और 'सव्वदरिसी' यह दो विशेषण नहीं पाये जाते, इसका कोई कारण तो होगा ही, पर मुक्तात्मा के सर्वज्ञ और सर्वदर्शी होने में जैन शास्त्र निश्चित प्रमाणभूत है।
... मोक्ष की विशेष अवस्था प्रकट करने के लिए सूत्रकार कहते हैं-मोक्ष शिव है। जो बाधा, पीड़ा दुःख से रहित हो वह शिव कहलाता है। मोक्ष में किसी प्रकार की बाधा या पीड़ा नहीं है।
मोक्ष अचल भी है। चलन दो प्रकार का होता है-स्वाभाविक और प्रायोगिक। दूसरे की प्रेरणा बिना अथवा अपने ही पुरुषार्थ के बिना स्वभाव से ही जो चलन हो वह स्वाभाविक चलन कहलाता है। जैसे जल में स्वभाव से ही चंचलता है। इसी प्रकार बैठा हुआ मनुष्य यद्यपि स्थिर दिखता है मगर योग की अपेक्षा से उसमें भी चंचलता है। यह स्वाभाविक चलन है। वायु आदि बाह्य निमित्त से जो चंचलता उत्पन्न होती है वह प्रायोगिक चलन कहलाता है। मुक्तात्माओं में न स्वभाव से ही चलन है, न प्रयोग से ही। आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म कि वायु भी उसे नहीं चला सकती है। मुक्तात्माओं में गति का भी अभाव है और इस कारण भी वह अचल है।
मोक्ष अरुज है। मुक्तात्माओं को किसी प्रकार का रोग नहीं होता। शरीर-रहित होने के कारण वात, पित्त और कफ विषमता जन्य शारीरिक रोग उन्हें नहीं हो सकते और कर्म रहित होने के कारण भाव-रोग रोगादि-भी नहीं हो सकते।
मोक्ष अनन्त है। मुक्तात्माओं का ज्ञान अनन्त है, दर्शन अनन्त है और वह ज्ञान-दर्शन अनन्त पदार्थों को जानता देखता है। अतएव मोक्ष अनन्त है। १२६ श्री जवाहर किरणावली