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अथवा - यह चारों पद एक ही कार्य को उत्पन्न करने के कारण एकार्थक कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-पत्र लिखने में कागज, कलम, दवात, और लिखने वाला यह चार हुए मगर यह सब मिलकर एक ही कार्य के साधक होते हैं अतएव एकार्थक हैं।
यह चारों मिल कर एक कार्य कौन- -सा करते हैं, जिस की अपेक्षा से इन्हें एकार्थक कहा गया है ? इस प्रश्न का उत्तर है - केवलज्ञान का प्रकट करना। यह चारों मिलकर केवलज्ञान को प्रकट करने रूप एक ही कार्य के कर्ता होने से एक ही अर्थ वाले कहलाते हैं।
इन नौ पदों में कर्म का विचार किया गया है और कर्म का नाश होने पर दो फल उत्पन्न होते हैं- पहला केवल ज्ञान और दूसरा मोक्षप्राप्ति । पहले के चार पदों ने मिलकर केवलज्ञान उत्पन्न किया । इस पक्ष की अपेक्षा चारों पदों का अर्थ एक बतलाया गया है।
आत्मा के लिए केवलज्ञान की प्राप्ति अपूर्व है । आत्मा को पहले कभी केवलज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि केवलज्ञान एक बार उत्पन्न होने के पश्चात् कभी मिटता नहीं है। जो वस्तु आकर फिर जाती है वह प्रधान नहीं है। प्रधान तो वही है जो आकर फिर कभी न जावे । केवलज्ञान ऐसी ही वस्तु है, अतएव प्रधान है। प्रधान पुरुष इसे ही प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। शंका- इन चार पदों से केवलज्ञान की ही उत्पत्ति क्यों मानी गई है? दूसरे ज्ञानों की उत्पत्ति क्यों नहीं मानी गई?
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समाधान-सब ज्ञानों में केवलज्ञान ही उत्कृष्ट है । वही क्षायिक ज्ञान है। कर्मों का क्षय होने से ही वह उत्पन्न होता है। इन चारों पदों से अन्य ज्ञानों की उत्पत्ति मानी जाय तो अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं । अतः इन पदों से केवलज्ञान की उत्पत्ति मानना ही समुचित है। और इसी अपेक्षा से इन चार पदों को समान अर्थ वाला बतलाया गया है।
शंका- केवलज्ञान की उत्पत्ति में यह चार पद क्या काम करते हैं? दो या तीन पदों से ही केवलज्ञान क्यों नहीं उत्पन्न होता? केवलज्ञान के लिए इन चारों की आवश्यकता क्यों है?
समाधान-पहला पद 'चलमाणे चलिए' है । वह केवलज्ञान की प्राप्ति में काम करता है कि इससे कर्म उदय में आने के लिए चलित होते हैं। कर्म का उदय दो प्रकार से होता है- उदय भाव से और उदीरणा से । स्थिति का क्षय होने पर कर्म अपना जो फल देता है वह उदय कहलाता है और अध्यवसाय विशेष या तपस्या आदि क्रियाओं के द्वारा जो कर्म स्थिति पूर्ण २१६ श्री जवाहर किरणावली