Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4%A व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥५८१॥ ८ शतके उद्देशः१ 11५८१॥ 4 - ॐ वाणं पुच्छा, गोयमा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पज्जत्तगअसुरकुमार अपज्जत्तगअसुर०, एवं जाव थणियकुमारा पज्जत्तगा अपज्जत्तगा य, एवं एएणं अभिलावेणं दुयएणं भेदेणं पिसाया य जाव गंधब्वा, चंदा जाव ताराविमाणा०, सोहम्मकप्पोवगा जाव अच्चुओ, हिडिमहिडिमगेविज्जगकप्पातीय जाव उवरिमउवरिमगेविज०, विजयअणुत्तरो. जाव अपराजिय० [प्र०] हे भगवन् ! संमृद्धिमजलचरतियचयोनिकप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! बे प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-पर्याप्तसंमूछिमजलचरप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तप्रयोगपरिणत. ए प्रमाणे गर्भज जलचरो पण जाणवा. ए प्रमाणे संमूर्छिम तथा गर्भज चतुष्पदस्थलचर जीवो जाणवा, ए प्रमाणे यावत् संमृर्छिम तथा गर्भज खेचरो पण जाणवा; ते दरेकना पर्याप्त अने अपर्याप्त बे भेदो कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! संमूर्छिममनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कद्या छ ? [उ०] हे गौतम ! ते एक प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे-अपर्याप्तसंमूर्छिममनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत. [प्र०] हे भगवन् ! गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! वे प्रकारना कह्या हे, ते आ प्रमाणे-पर्याप्तगर्भजप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तगर्भजप्रयोगपरिणत. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारभवनवासिदेवप्रयोगपरिणत | पुद्गलो केटला प्रकारना कया छे ? [उ०] हे गौतम! वे प्रकारना कह्या छे ते आ प्रमाणे--पर्याप्तअसुरकुमारप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तअमुरकुमारप्रयोगपरिणत; ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो पर्याप्त अने अपर्याप्त जाणवा. ए प्रमाणे ए अभिलापवडे बे भेदो पिशाचो यावत् गांधर्वांना जाणवा. तेमज चन्द्रो यावत् ताराविमानो. सौधर्मकल्पोपपन्नक, यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक, * * * For Private and Personal Use Only

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