Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५८०॥
| गपरिणत (दं. १.) प्र०) हे भगवन् ! सूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कद्या छ ? [उ०] हे | गोतम ! बे प्रकारना कह्या ३ ते आ प्रमाणे-पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकएक
81८ शतके न्द्रियप्रयोगपरिणत. आ स्थले (बीजी वाचनामा) कोइ अपर्याप्तने प्रथम कहे छे. अने पछी पर्याप्त ने कहे छे. ए प्रमाणे वादरपृथिवी- उद्देशः१ कायिकए केन्द्रिय यावत् बनस्पतिकायिक कहेवा. ते बधा बबे प्रकारे हे-मूक्ष्म अने बादर, तथा पर्याप्त अने अपर्याप्त. [प्र०] हे । ५८०॥ भगवन् ! बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! वे प्रकारना कद्या हे ते आ प्रमाणे-15 पर्याप्त बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तवेइन्द्रियप्रयोगपरिणत. ए प्रमाणे त्रीइन्द्रियो अने चउरिन्द्रियो पण जाणवा. [प्र०] हे 14 भगवन् ! रत्नप्रभापृथिवीनरयिकप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या ? [उ०] हे गौतम ! वे प्रकारना कया है; ने आ प्रमाणे-पर्याप्तरत्नप्रभापृथिवीनरयिकप्रयोगपरिणत अने अपर्याप्तरत्नप्रभापृथिवीनरयियप्रयोगपरिणत. ए प्रमाणे यावत् नीचे | सातमी नरकपृथ्वी मुधी जाणवू.
समुच्छिमजलयरतिरिक्खपुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तग० अपज्जत्तग०, एवं गम्भयकंतियावि, समुच्छिमचउप्पयथलयरा, एवं चेव गम्भवतिया य, एवं जाव संमुच्छिमखहयरगन्भवतिया य एकके पजत्तगा य अपजत्तगा य भाणियब्वा । समुच्छिममणुस्मपंचिंदियपुच्छा,गोयमा! एगविहा पन्नत्ता, अपज्जत्तगा। | चेव । गमवतियमणुस्सपंचिंदियपुन्छा, गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता,तंजहा-पजत्तगगम्भकंतियावि अपजत्तगगम्भवतियावि । असुरकुमारभवणवासिदेवाणं पुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा--पजत्तगअसुर०
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