Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥ १ शतके उदेशः १ ॥१०॥ अने निर्जराया अपवर्तन, संक्रमण, निधत्तन अने निकाचल पदोमांत्रण प्रकारनो काल कहेवो. (सू०१३) , नेरइयाणं भंते ! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति ते किं तीतकालसमए गेण्हंति ? पडप्पन्नकालसमए गेण्हंति ? अणा का समए गेण्हंति !, गोयमा! नो तीयकालसमए गेहंति, पडुप्पन्नकालसमए गेण्हंति, नो अणा समए गिण्हंति १। नेरइयाणं भंते ! जे पोग्गला तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति ते किं तीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति पडुप्पन्नकालसमा घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति?, गोयमा ! अतीयकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पडप्पन्नकालसमए घेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो ४ गणसमयपुकखडे पोग्गले उदीरेति २, एवं वेदेति ३ निजाति ४ ॥ (सू.१४) अर्थः-(प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको जे पुद्गलोने तैजसः कार्मणपणे ग्रहण करे छे, तेने शु अतीत काळ समयमा ग्रहण करे छ । प्रत्युत्पन्न काळसमयमा ग्रहण करे छे ? के भविष्यकाळ समयमा ग्रहण करे छे ? (उ०) हे गौतम ! अतीत काळसमयमां प्रहण करता नथी. प्रत्युत्पन्न काळसमयमा ग्रहण करे छे. भविष्य काळसमयमा ग्रहण करता नथी. (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिको तैजस कार्मणपणावडे ग्रहण करेला जे पुद्गलोनी उदीरणा करे ते अ॒ अतीतकाळसमयमा ग्रहण करायेला पुद्गलोनी उदीरणा करे छ ? वर्तमान काळसमयमा ग्रहण कराता पुगलोनी उदीरणा करे छे? अथवा जेओनो उदयकाळ आगळ आववानो छे एवा पुद्गलोनी | उदीरणा करे ? (1०) हे गौतम ! अतीत काळसमयमा ग्रहण करायेला पुद्गलोनी उदीरणा करे छे. वर्तमान काळ समयमा ग्रहण करातां पुद्गलोनी सदीरणा करता नथी, तथा जेओनो ग्रहण समय आगामी छे एवा पुद्गलोनी पण उदीरणा करता नथी. ए SERIERRRRRRRA% For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 330