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अवचेतन मन के सम्पर्क
आकृति ऐसी होती है जिसमें शान्ति और संतोष की झलक होती है, प्रसन्नता और स्थिरता का भाव टपकता है । एक आकृति ऐसी होती है, जिसमें अशांति, असंतोष, अस्थिरता, व्यग्रता, छटपटाहट, चंचलता और विषाद का भाव टपकता रहता है । इन दोनों आकृतियों के आधार पर बिना कुछ पूछे ही व्यक्तित्व का पता लग जाएगा । आकृति प्रमाण होती है, स्वयंभू साक्षी होती है । इस आधार पर आकृतिविज्ञान का विकास हुआ है और उसके जो निष्कर्ष निकले हैं, वे सही प्रमाणित हुए हैं ।
दूसरा है- श्वास विज्ञान । श्वास के आधार पर व्यक्ति की पहचान हो जाती है । यदि श्वास तेज और छोटी होगी तो पता लगा जाएगा कि व्यक्ति असंतोष से घिरा हुआ है, मानसिक समस्याओं में उलझा हुआ है । वह विषादग्रस्त है । उसमें हीनता की घनघोर घटाएं उमड़ रही हैं, व्यग्रता है, गहरी चंचलता और टीस है । यदि श्वास शान्त और कि व्यक्ति बहुत शान्ति से जी रहा है, उसमें सन्तोष और प्रसन्नता फूट रही है ।
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं—एक वे, जो प्रसन्नता का जीवन जीते हैं और दूसरे वे, जो अप्रसन्नता का जीवन जीते हैं । एक आदमी प्रसन्नता से भरा हुआ है और दूसरा व्यक्ति विषाद से घिरा हुआ है । यह अन्तर क्यों ? दोनों प्रसन्न क्यों नहीं ? दोनों विषण्ण क्यों नहीं ? यदि प्रसन्न हों तो दोनों प्रसन्न होने चाहिए और यदि विषण्ण हों तो दोनों विषण्ण होने चाहिए। एक प्रसन्न और एक विषण्ण---यह भेद क्यों ? जब हम भेद की खोज में चलते हैं तो हमें कारण भी उपलब्ध हो जाता है । वह कारण है- 'काम' – कामना ।
मन्द है तो पता जाएगा का सागर लहरा रहा है
मनोविज्ञान की भाषा में 'काम' मौलिक मनोवृत्ति है । धर्मशास्त्र की भाषा में 'कामना' अतीत का संस्कार है । प्रत्येक व्यक्ति अतीत से जुड़ा हुआ है । कोई भी व्यक्ति अतीत से कटकर इस दुनियां में नहीं जी सकता । आदमी वर्तमान में जीता है, वर्तमान में श्वास लेता है, पर वह जुड़ा हुआ है अतीत से । वह अतीत से इतना संग्रह और संचय कर रहा है कि यदि अतीत का संग्रह समाप्त हो जाए तो व्यक्ति भी समाप्त हो जाएगा । वह इस दुनिया में नहीं रहेगा । उसकी दुनिया दूसरी होगी । फिर वह सामाजिक नहीं रहेगा । किसी लोक का प्राणी नहीं रहेगा । वह केवल आत्मा ही रहेगा । आत्मा बचेगी, प्राण नहीं बचेगा । प्राण के बिना कैसा प्राणी ?
हम सब अतीत के साथ जुड़े रहते हैं । उस श्रृंखला की कड़ियां हैं— अतीत का संस्कार, अतीत का कर्म - बंधन, अतीत की वृत्तियां, अतीत की संज्ञाएं, अतीत की वासनाएं, अतीत की मनोग्रंथियां। ये मौलिक मनोवृत्तियां हैं । भिन्न-भिन्न शास्त्रों में भिन्न-भिन्न शब्दों के द्वारा एक ही सचाई को अभिव्यक्त किया गया है ।
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