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प्रथम प्रकाश
एम माने बे, तेमज शुधिनी बावतमां पण एक जने कररी शुछि माने जे, अने एक रक्षावमे शुछि माने . मोदनी बावतमां एक आत्माना लये करी मोद माने डे अने एक नव गुणनो उच्छेद थाय, त्यारे मोक्ष माने . वली तेमां देवताओ पाउळथी उच्छेद करनारा, वरदानने आपनारा अने सांसारिक रीतिमां वर्त्तनारा होय जे, तेथी तेश्रो सर्वझपणाने योग्य शी रीते थाय ? नज थाय. ते माटे तेमनो प्ररूपेलो धर्म प्रमाणनूत नथी. जेम अनेक माणसो 'अमे, आ, ते, तेओ, एम पोतानी मेले धर्म कहे ते प्रमाणनूत गणाय नहीं, तेम तेमनो कहेलो धर्म प्रमाण नूत गणातो नयी; कारणके, तेश्रो सर्वना वचनने अनुसारे धर्मने कहेता नथी, जे सर्वझना वचनने अनुसारे कहेवामां आवे तेज धर्म गणाय , तेथी केवलि प्ररूपित धर्मज श्रेष्ठ , आ प्रमाणे सम्यक् प्रकारनी शुफ रुचिश्रधा होय ते व्यवहार सम्यक्त्व कहेवाय जे. कारणके, व्यवहारनयनो मतपण प्रमाणज डे. ते व्यवहारनयना बळयीज तीर्थनी प्रवृत्ति बे, जो ते नयने प्रमाण नूत न मानीए, तो तीर्थनो जनेद थइ जाय. ___ शास्त्रमा कह्यु डे के," जय जिणमयं पवजह, ता मा ववहार निच्छयं मुयह। __ ववहारननच्छए तिथ्युच्छेो जवस्समिति" ॥ १ ॥
___“जो तमारे जिनमत अंगीकार करवो होय तो तमे निश्चय अने व्यववहार बने नयने ओशो नहीं. तेमां व्यवहार नयने गेमवाथी. अवश्य तीर्थनो जच्छेद थाय ." १
सम्यक्त्वना बीजा बे प्रकार. पुद्गलिक अने अपुद्गलिक एम पण सम्यक्त्वना बे नंद पडे. जेमां मिथ्या स्वनाव गयो होय अने सम्यक्त्वना पुंजमा रहेला पुद्गलोना वेदवा रूप दपोपशम प्राप्त थाय, ते पुद्गलिक सम्यक्त्व कहेवाय जे. सर्वथा मिथ्यात्व, मिश्र सम्यक्त्व पुजना पुद्गलोनोक्यथवाथी तथा उपशमथी उत्पन्न थयेन जे निःकेवल जीव परिणाम रुपदायिक तथा उपशम सम्यक्त्व ते अपुद्गलिक सम्यक्त्व कहेवायचे.
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