Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 428
________________ ३०१ श्री प्रात्मप्रबोध. अहीं भवस्थ परमात्मतानी स्थितिनुं मान जघन्यथी अंतर्मुहूर्त्तनु ने अने उत्कृष्टथी देशे जणी एवी पूर्व कोटि वर्षमुंबे अने सिक परमात्मतानी स्थितिनुं मान सादि अपर्यवसित कालवें . एवा प्रकारनी परमात्मता जेने होय रे ते परमात्मा कहेवाय छे. से परमात्मा भवस्थ केवळी अने सिघ एवा चे प्रकारे . तेमां प्रथम भषस्थ केवलीनुं स्वरूप बतावे जे. नवस्थ केवलीन स्वरूप. अवस्य केवनीना पण १ जिन अने २ अजिन एवा बे नेद ले. तेमां ने जिन नामकर्म उदयवाला तीर्थकर ते जिन कहेवाय ने अने जे सामान्य केपली ते अजिन कहेवाय जे. ते जिन ? नाम जिन, २ स्थापना जिन, ३ घव्य जिन अने ४ भाव जिन–एम चार प्रकारे रे. ते विष आ प्रमाणे कछु - " नामजिणाजिनामा ग्वण जिणा पुणजिणंदपडिमाओ। दव्वजिणाजिजीवा नावजिणा समवसरणत्या" ॥१॥ ने श्री ऋषज, अजित अने सजव वगेरे जिनो ने ते नाम जिन कहेपाय . से नाम जिन साक्षात् जिनगुण वर्जित , तोपण परमात्मगुण- स्मरण बगेरे कारणने लश्ने परमार्थपणे सिधिने करनार होवाथी सम्यग् दृष्टि पुरुषोए से सर्व काले स्मरण करवा योग्य छे जेम लोकने विषे पण मंत्राक्षरना स्मरणथी कार्यनी सिफि देखाय छे. रत्न, सुवर्ण, रजत, आदि धातुमय एवी कत्रिम तथा अकत्रिम जे जिनेश्वरनी प्रतिमा ते स्थापना जिन कहेवाय , तेने विषे पण जो के साक्षात् जिनगुण विद्यमान नथी तोपण तेमां तात्विक जिन स्वरूपर्नु स्मरण थवाने बीधे तेना दर्शन करनार सम्यग्दृष्टि जीवोना चित्तमां परमशांत रसनु जत्पादक होवाथी भने अबोधी जनने उत्तम बोधिवीजनी प्राप्तिनुं हेतु होबाथी तेमज श्री केवली भगवान्ना वचनवमे तेमां जिनतुल्यप| होवाथी शुक मार्गानुसारी श्रावकोने अव्य भने भावथी सर्वकाले शंका रहितपणे ते स्थापना जिन वंदनीय, पूजनीय अने Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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