Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 434
________________ ३ए श्री प्रात्मप्रबोध. शास्त्रोमां प्रसिद्ध जे. वनी श्री अरिहंतना वचनमां पण अनुक्रमे पूजार्नु फल मोक्ष प्ररुपे , ते जाणीने पठी स्वेछावादीओना वितय वचनो उपर केम विश्वास रहे ? तेमज पूजाने आश्रीने ते जैनानासो कहे जे के. “ नगवंते हिंसानो तदन निषेध कर्यो में, तो पी पूजानुं आचरण केम कराय ? तेना उत्तरमा कहेवातुं के ए वचन कये ठेकाणे कयु ने के हिंसा करवा ? हिंसानो निषेध कह्यो छे, ए वात सत्य , परंतु जगवते कया आगममां जिनपूजा निषेधेली ने ? ते जणावो. आगमने विषेतो जरहें सत्तर भेदी पूजा करवाने कहेलु ने अने ते बात कर्त्तव्य रुपे दशावेन डे. श्री प्रश्न व्याकरण सूत्रने विषे पेहेला संवरघारमा जे अहिंसा-दयाना साठ नाम आपेला छे, तेमां पूजा, पण नाम छे. जेम के, “निव्वाणं १ निव्वुर समादि ३ संती ४ इत्यादि यावत् जालो ४६ आयतणं ४७ जयण ४८ मप्पमा ४९ आसासो ५० वीसासो ५१ अन्नो ए३ सव्वस्सविअनाघाओ ५३ चोक ५४ पवित्तीएए सुश्५६ पूया५७विमलए८प्पन्नासईएएनिम्मलतरिति ६०” एवमाणि नियय गुणनिम्मियाई पजवनामाणिहात्ति ॥ अहिंसाए लगवई एति ॥ (श्वाऽहिंसानामसु जहशब्देन 'पूया' शब्देन च देवपूजा गृहीताऽस्ति ). अहिं दयाना नामने विषे (जाम) शन्द तथा (पूया) शब्दे करी देव पूजा ग्रहण करेली , कारण के 'यजनं यज्ञः' इत्यादि व्युत्पत्ति थाय . तो हवे तमो जिन पूजाने हिंसामा केम गणो गे? वनी श्री सूयगमांगजीना बीजा श्रुतस्कंधना बीमा अध्यायनमां अर्थदंडना अधिकारमा कयु छ के, " नागहेऊ न. यहेळं" इत्यादि पाठमां नाग, नूत यदादिकनी हेतु पूजाने विषे हिंसापर्ण कहेल , पण जिन पूजामां कहेब नथी, कारण के, जो जिन पूजामां हिंसा थती होत सो ते सूत्रमा जिणहेऊ.' एवो पाउ कहेत, पण तेवो पाठ त्यां आपेलो नथी; तेथी श्रा प्रमाणे सूत्रना वचन उत्यापन करी तमारं अंगीकार केम कराय ? बसी ते Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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