Book Title: Atmprabodh
Author(s): Jinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 438
________________ श्री आत्मप्रबोध. पणे कहेंलो ने, ते आ प्रमाणे जे-" श्री गौतमस्वामी पुढे छ के, “नगवन् , विद्याचारणनी तिर्ण गतिनो विषय केटलो डे ? प्रनुए उत्तर प्यो के, " सेो एक मगले मानुषोत्तर पर्वते जाय छे अने त्यां चैत्यवंदन करी बीजे मगन्ने नंदीश्वर छीपे जाय जे. त्यांना चैत्योने वंदना करी त्यांथी नीकळी एक मगने अहिं आवे ने अने अहींना चैत्योने वंदना करे के ए प्रकारनी तेमनी तिर्की गति कहेली . " पठी गौतम स्वामीए पुग्यं के, “ हे जगवन् , विद्याचारणनी ऊर्ध्व गतिनो बिषय केटलो डे ?" पत्नुए उत्तर आप्यो-" हे गौतम, तेओ एक मगले नंदनवनमा जाय डे अने त्यांना चैत्योने वंदना करी बीजे डगने पंगवनमा जाय , त्यां चैत्यवंदन करी त्रीजे मगले अहीं आवी अहींना चैत्योने वंदन करे २. ए प्रमाणे विद्याचारणनी ऊर्ध्व गतिनो विषय कहेलो छे. परंतु गतिना प्रमादथी वच्चे रहेला चैत्यानुं वंदन रही जाय तो ते स्थानकनी आलोयणा-पडिकमण कर्या विना तेमने आराधना होती नथी;ज्यारे ते स्थानकने आलोव्या-अतिक्रम्याथी आराधना होय छे. एवीरीते जंघाचारणना विषयतुं सूत्र जाणी लेवं. तेनी गतिना विषयमा जे फेर , ते आ प्रमाणे-"जंघाचारण मुनि तिर्ण गति आश्रीने एक मगले तेरमा रुचक छीपमा जाय , त्यांथी पाग फरी बीजे मगले नंदीश्वरे आवे डे अने त्रोजे मगले अहीं आवे अने तेमनी ऊर्ध्व गति आश्रीने पहेले डगले पंगवनमां जाय , त्यांथी पाग निवर्ती बीजे मगले नंदनवनमां आवे डे अने त्रीजे मगले अहिं आवे . ते स्थानकनो आ नावार्थ जे." लब्धि फोरक्वाथी थयेस्रो जे प्रमाद तेने सेक्वाथी तेने आलोच्या के पमिकम्या विना चारित्रनी आराधना थती नथी, कारण के, तेनी विराधना करनारने चारित्रना आराधन- फल मनतुं नथी. ___ आ अधिकारने विषे ते जैनाभासोए उत्सूत्र प्ररूपणानो नय अवगण बहुश्रुत परंपराए आवेस्रो चैत्य शब्दनो ज्ञान रुप अर्थ जे प्ररूपे ने ते विषे क. हेवामां आवे छे जो अहीं साधुओए ज्ञान वंदन करेलुं होय तो चेश्याई (चैत्यानि ) एवा बहु वचननो प्रयोग न करत. नगवान्ना ज्ञान- अति अद्भुत एक स्वरूपज हो जोइए तेथी 'चेश्य' ( चैत्य ) एवो एक वचननो पाठ होवो जोइए, पण तेवो पाठ मुकवामां आव्यो नयी; ते उपरथी ते चारण मुनिओए श्री जिन Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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